‘हिंदी, हिंदू और हिंदुत्व की विचारधारा देश (भारत) को बाँट रही है।’- शशि थरूर

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हाल ही में अमेरिका में पी.एच.डी. कर रहे एक तमिल छात्र अब्राहम सैमुअल को हिन्दी न बोल पाने के कारण मुंबई एयरपोर्ट पर रोक दिया गया था। उसने प्रधान मंत्री, मंत्रियों और राजनेताओं को ट्वीट किया, जिनमें शशि थरूर भी थे। इसी की प्रतिक्रिया में कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने यह विवादास्पद ट्वीट कर दिया कि हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व की विचारधारा देश को बाँट रही है, हमें एकता की ज़रूरत है न कि समानता की। शशि थरूर ने इस छोटी से घटना पर हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व पर भारी आक्रमण कर दिया, हालांकि यह भी स्पष्ट नहीं है कि हिन्दी को ले कर यह घटना हुई कैसे? वस्तुत: यह कांग्रेसी नेता पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति में पला हुआ है और अँग्रेज़ी का प्रबल समर्थक है। ऐसे लोगों के विवादस्पद वक्तव्य बहुत ही असहज और क्षोभकारी होते हैं। लगता है शशि थरूर जी या तो भारतीय संस्कृति, परंपरा, जीवन-शैली और भाषाओं से परिचित नहीं हैं या जानबूझ कर सनसनी पैदा करने के लिए ऐसी बातें करते रहते हैं।

उन्होंने हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व के बारे में ऐसी बेहूदा वक्तव्य दे कर भारत, भारतीय संस्कृति और भारतीय आस्था-विश्वास का अपमान किया है। उन्हें यह तो मालूम होगा कि हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुत्व का विकास ‘’सिंधु’’ सभ्यता में हुआ है। सिंधु नदी के पार भारत में रहने वाले लोगों के लिए ईरान और उसके आस-पास हिन्दू शब्द प्रयुक्त होता था। वास्तव में यह शब्द भौगोलिक और सांस्कृतिक संदर्भ में प्रयुक्त होता था। बाद में हिन्दू उसे कहा जाने लगा जो भारत या हिंदुस्तान को अपनी मातृभूमि (या पितृभूमि) और अपनी पुण्य भूमि दोनों मानता था। बाद के कुछ स्वार्थी और संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों और राजनीतिज्ञों ने इसकी पहचान धर्म से कर दी और हिन्दुत्व को एक विशिष्ट धार्मिक विचारधारा से जोड़ दिया। इसी लिए हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म या सनातन धर्म या वैदिक धर्म भी कहा जाने लगा। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सही अर्थ में हिन्दुत्व की परिभाषा करते हुए हिन्दुत्व को एक जीवन शैली माना है न कि कोई उपासना पद्धति। हिन्दुत्व तो मानव जाति के प्रति उदार और व्यावहारिक दृष्टि रखता है। इसकी स्थापना इस्लाम और ईसाई धर्मों की भाँति नहीं हुई है जिसे किसी पैगंबर या ईश्वरीय दूत ने की हो। हिन्दुत्व ईश्वर के निराकार या निर्गुण रूप परब्रहम स्वरूप ॐ की जहां आराधना करता है, वहाँ उसके साकार या सगुण रूप शिव, विष्णु, ब्रह्मा, दुर्गा, राम, कृष्ण, हनुमान आदि देवी-देवताओं की भी पूजा करता है। हिन्दू नास्तिक भी हो सकता है और आस्तिक भी। यह भी बता दें कि हिन्दुत्व ‘वसुधेव कुटुंबकम’’ और ‘’विश्व बंधुत्व’’ में विश्वास रखते हुए सर्वधर्म सद्भाव का समर्थक है।

विभिन्न तथाकथित धर्मों या संप्रदायों ने भारत पर अपना अधिकार जमाने के लिए हमारे देश पर कई बार आक्रमण किया लेकिन हिन्दू-बहुल देश भारत ने किसी देश की भूमि पर न तो आक्रमण किया और न ही कब्जा किया, ऐसा इतिहास बताता है। भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत है और सभी हिंदुस्तानियों या भारतीयों की यही भाषा रही है। संस्कृत भाषा समूचे विश्व में सर्वाधिक समृद्ध और वैज्ञानिक भाषा है। भाषायी विकास के अंतर्गत हिन्दी भाषा का उद्भव हुआ। यह भाषा भी भारत के लोगों को उसी तरह जोड़ती जिस तरह हिन्दू और हिन्दुत्व लोगों को जोड़ते हैं। यह भाषा समाज को जोड़ती है, देश को जोड़ती है, तोड़ती नहीं है। यह केवल हिंदुओं की भाषा नहीं है, यह मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख आदि अनेक धर्मों, मजहबों, पंथों और मतों की भी भाषा है और रही है। यह भाषा भारत की सभी भाषाओं का साथ लेती है और उनको भी साथ देती है।

महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए पुरजोर प्रयास किया था और उन्हीं की विचारधारा का डंका बजाने वाली कांग्रेस के ये नेता हिन्दी के विरुद्ध इस प्रकार की बातें कर रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि कांग्रेस ने इस वक्तव्य का खंडन अभी तक नहीं किया है। वस्तुत: यह राजनीतिक विद्रूपता है और ये तथाकथित सेक्युलर लोग अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा में ऐसे अनर्गल वक्तव्य देते हैं जो बाद में उनके लिए भारी भी पड़ सकते हैं। संभवत: शशि थरूर जैसे अँग्रेज़ीदाँ लोगों का यह मानसिक दिवालियापन है कि उन्हें अपने देश की भाषाओं और संस्कृति से प्रेम नहीं है।

#प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी

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