Read Time1 Minute, 46 Second
तेरे ख़्यालों में रहना अब अच्छा लगता है ।
यादों के दरिया में बहना अच्छा लगता है ।।
तेरे दिल में सांसें लेना अच्छा लगता है ।
इंतज़ार के पल पल सहना अच्छा लगता है ।।
ख़ुशबू में तेरी महक़ना अब अच्छा लगता है ।
इश्क में तेरे बहकना अब अच्छा लगता है ।।
मेरे सताने पर चिढ़ जाना अच्छा लगता है ।
साथ पाकर मेरा खिल जाना अच्छा लगता है ।।
बारिशों में साथ टहलना अब अच्छा लगता है ।
पल पल तेरे साथ निखरना अच्छा लगता है ।।
सर्द रातों में बिन तेरे सिसकना अच्छा लगता है ।
मेरे दिल में बस तेरा रहना अच्छा लगता है ।।
रेत पर नाम लिखना और मिटाना अच्छा लगता है ।
दुनिया से अपना प्यार छुपाना अब अच्छा लगता है ।।
तुमको पाकर यूं मुस्कुराना अब अच्छा लगता है ।
‘मैं’ से यूं ‘हम’बन जाना अब अच्छा लगता है ।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
Post Views:
586