ज्यादा खाती है सरकारी भैंस !

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javahar

सरकारी भैंस ने इस पंचवर्षीय योजना में भी पाड़ा ही दिया। चलो पाड़ा दिया तो दिया,पर दूध तो देवे !! जब देखो बाल्टी खाली की खाली। दूध होता तो है,पर देती नहीं है,चुपके से पाड़े को पिला देती है। यों देखा जाए तो पाड़ा अभी सीधा है,अपने बाड़े ही कुदकड़ी लगाता रहता है। उसकी कोई गलती नहीं है,वो तो अभी खाना सीख ही रहा है,लेकिन भैंस खानदानी है,खाने का मौका मिल जाए तो चारा-चंदी ऐसा साफ करे कि पूछो मत। भूखे विरोधी जब इसे रात-दिन पगुराते देखते हैं तो मारे गुस्से के उनके खाली मुंह से भी झाग निकलने लगता है। पास-पड़ोस के सब बोलने लगे हैं कि चौधरी जी,निकाल बाहर करो इस भैंस कोl क्या काम की ससुरी,खाती बहोत है,देती कुछ नहीं है। सिरफ गोबर-गैस के भरोसे खूंटे से बांधे रखना कोई समझदारी तो है न!
चौधरी ठहरे धनी-मानी,खयाल कहीं-न-कहीं मूंछों का भी है। कहते साठ साल से ज्यादा समय हुआ जब हमारे दादा,बड़े चौधरी मेले से मुर्रा-नस्ल देख समझ कर लाए थे। तभी से पीढ़ी-दर-पीढ़ी खूंटे पर बंधी खा रही है। पहले वालियों ने तो अपने समय पर दूध भी दिया, कभी कम-कभी ज्यादा,पर बाद में नस्ल बिगड़ती गई। इधर मंहगाई के साथ-साथ इसकी खुराक भी बढ़ती जा रही है,और दूध सूखता जा रहा है। भैंसका पेट भरने में पुश्तैनी  जमीन बिकती जा रही है परंतु दादा की निशानी है,सो घर में जजमान समझकर बांध रखा है।
लोगों के कहने-सुनने से कई दफा मन हुआ कि हाट बता ही दें,पर भैंस सरकारी है,बड़ी चतुर चालाक,दो पीढ़ी पहले वाली ने मौका मिला तो संविधान चबाकर महीनों जुगाली की थी,उसका असर अभी भी बना चला आ रहा है। उसकी कामकाज की भाषा अंग्रेजी जैसी कुछ भी हो,पर लगता है कि वो हिन्दी भी समझती है। हाट के दो दिन पहले से वह गाढ़ा दूध देने लगती है और बात को सफलता पूर्वक टलवा देती है।
घरवाले अंदर-ही-अंदर चिंतित हैं,माना कि ईंधन की बड़ी समस्या है पर कंडे-उपले से भैंस का खर्चा नहीं निकल सकता है। मुंह आगे कोई बोलता नहीं है,परंतु सच बात ये है कि भैंस को पोसने में खुद चौधरी दुबले होते जा रहे हैं। सिर्फ निकालते रहने से तो कुबेर का खजाना भी खाली होने लगता है।
उधर मीडिया में किसी ने कह दिया कि,गरीबी एक मानसिक अवस्था है। यानी अगर आदमी को लगे कि उसकी आमदनी से खर्चा ज्यादा है और हाथ लगातार खाली हो रहे हैं तो वह गरीब है। चिंता, चिता समान होती ही है। उनकी सेहत सेंसेक्स के साथ गिर रही थी कि एक संशोधित बयान और आ गया कि गरीबी का कारण बीमारी है। यानी जो बीमार हैं वो गरीब हैं। या यों कह लीजिए कि जो चिंतित हैं वो गरीब हैं। सरकारी भैंस के कारण चौधरी चिंतित और बीमार है, और चौधरी के कारण सारा गांव चिंतित यानी बीमार है।
 मीडिया में आंकड़े इस बात के आ रहे हैं कि,गरीबी बढ़ रही है,जबकि खबर यह होना चाहिए कि भैंस ज्यादा खा रही है। गांव भैंस के विरोध में होता जा रहा है। चौधरी खानदान की परंपरा से बाहर आने को आतुर हैं,पर बाड़े का क्या!! बाड़ा सूना हो जाएगा। बाड़े में कुछ तो होना ही चाहिए,मुर्गियां तो शोभा देंगी नहीं। नए लड़कों की मांग है कि,चौधरी हाथी पाल लें।

                                                                                          #जवाहर चौधरी

परिचय : जवाहर चौधरी व्यंग्य लेखन के लिए लम्बे समय से लोकप्रिय नाम हैl 1952 में जन्मे श्री चौधरी ने एमए और पीएचडी(समाजशास्त्र)तक शिक्षा हासिल की हैl मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इन्दौर के कौशल्यापुरी (चितावद रोड) में रहने वाले श्री चौधरी मुख्य रूप से व्यंग्य लेखन,कहानियां व कार्टूनकारी भी करते हैं। आपकी रचनाओं का सतत प्रकाशन प्रायः सभी हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में होता रहता हैl साथ ही रेडियो तथा दूरदर्शन पर भी पाठ करते हैं। आपकी करीब 13 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं,जिसमें 8 व्यंग्य संग्रह,1कहानी संग्रह,1लघुकथा संग्रह,1नाटक और 2उपन्यास सम्मिलित हैं। आपने लेखन को इतना अपनाया है तो,इसके लिए आप सम्मानित भी हुए हैंl प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान में म.प्र.साहित्य परिषद् का पहला शरद जोशी पुरस्कार आपको कृति `सूखे का मंगलगान` के लिए 1993 में मिला थाl इसके अलावा कादम्बिनी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय प्रतियोगिता में व्यंग्य रचना `उच्च शिक्षा का अंडरवर्ल्ड` को द्वितीय पुरस्कार 1992 में तो,माणिक वर्मा व्यंग्य सम्मान से भी 2011 में भोपाल में सराहे गए हैंl 1.11लाख की राशि से गोपालप्रसाद व्यास `व्यंग्यश्री सम्मान` भी 2014 में हिन्दी भवन(दिल्ली) में आपने पाया हैl आप `ब्लॉग` पर भी लगातार गुदगुदाते रहते हैंl

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।