संवेदना पर हावी आधुनिकता…

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sima ram

सुधा की नजरें बार-बार दरवाजे पर ठहर रहीं थी। उसे लग रहा था कि, बचपन की तरह आज भी उसे ‘सरप्राइज‘ देने के लिए पीयूष आ जाएगा,पर आज उसे दरवाजे की हर आहट से निराशा ही मिल रही थी। रिश्तेदारों की मूक निगाहें भी ढेरों सवाल कर रही थी,वहीं सुधा की निशब्दःआँखें प्रत्युतर देने में
असमर्थ। पूरे १० दिन हो चुके थे,घर में रिश्तेदारों का जमघट
लगा था। हर एक का एक ही सवाल कि,पीयूष कब आ रहा है? बहानों की भी सीमा होती है, और पुत्र प्रेम में सुधा वह भी लांघ चुकी थी,पर कहीं-न-कहीं मन में उसके भी यह कसक
थी कि ऐसे वक्त में तो पीयूष को यहां होना ही चाहिए था।
अम्मा पिछले पूरे साल बीमारी में उसे ही याद कर रही थी। यहाँ तक कि, मरते समय भी उनकी निगाहें भीड़ में भी उसे ही तलाश रही थी। बचपन से ही सुधा से भी ज्यादा उन्होंने ही
उसे सभांला था। आज भी याद है कि, जब वो पढ़ने अमेरिका जा रहा था तो अम्मा छुप-छुपकर कितना रोया करती थी। आज जब पूरा परिवार दशादशन में मुंडन करवा
रहा है,तो उसकी कमी बहुत खल रही है। पहले पढ़ाई, फिर नौकरी,अब तो लगता है वो वहीं का होकर रह गया है। ‘मामीजी आपका फोन’ कहकर अतुल सुधा के हाथ में मोबाइल पकड़ा गया। पीयूष का ही फोन था।एक पल के लिए आस बंधी कि, शायद कहेगा-‘माँ, मैं आ रहा हूॅ’,पर नहीं…माँ,मैंने हमारी परम्परानुसार आज मुंडन करवा लिया है,अब
परिवार में तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। मैने मुंडन वाला फोटो अपलोड भी कर दिया है,मिस यू दादी’ के साथ।२०० से भी अधिक लाइक मिले हैं और कमेन्ट में ‘रिप’। मैं आ तो नहीं
पाया पर ऐसे दुःख की घड़ी में आपके साथ हूँ। छुट्टी मिलने पर जल्द ही आउँगा,’ कहते हुए फोन रख दिया। ‘जल्द ही आउँगा’, शब्दों ने सुधा को फिर आस के धागों में बांध दिया,पर वह कैसे बताती कि उसके पिता के कमजोर और झुके कंधों को अब उसका सहारा चाहिए।
काफी समय तक सुधा सोचती रही कि,आज की नवीन पीढ़ी ने हमारी परम्पराओं को किस तरह औपचारिकताओं का जामा पहना दिया है। क्या सोशल साइट्स
ही हमारी खुशी और गम बांटने का जरिया मात्र रह गया है। उन मानवीय संवेदनाओं का क्या,जो आज भी मन में हिलोैरे मारती है और जिसे सिर्फ सच्चे अहसास की जरुरत होती है,
न कि दिखावे की……..।

                                                                #डाॅ. सीमा रामपुरिया

परिचय : डाॅ. सीमा रामपुरिया मौजूदा समय में में स्वतंत्र पत्रकार एंव लेखिका की भूमिका में हैं। आप इंदौर शहर के कुछ समाचार पत्रों के साथ ही सामाजिक पत्रों में भी लिखती हैं। पत्रकारिता में स्वर्ण पदक प्राप्त कर चुकी डॉ.रामपुरिया ने उप राष्ट्रपति मो.हामिद अंसारी से भी सम्मान पाया है। आप इंदौर में निजी कालेज में  मीडिया प्राध्यापक हैं।

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One thought on “संवेदना पर हावी आधुनिकता…

  1. मन मे एक टीस सी उठी है, अच्छी कहानी लिखी है।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।