#कीर्ति जायसवालप्रयागराज(इलाहाबाद)
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मस्ताना मैं चलता जाता, गिरता और सम्भलता जाता।
ठोकर खा मिट्टी में आया, धूल में सोया आज मैं।
कुछ नहीं! मदिरा तेरा यह बहुत अनोखा प्यार है।
मदिरा पीकर मैं भी मदिरा, मदिरा यह संसार है,
आँखों से न अश्रु बहे, अब मदिरा की यह धार है।
मस्ताना मैं; मस्तानी यह दुनिया देखो आज है,
दुःख के क्षण तुम कहाँ गए? अब भूतों से भी प्यार है।
मस्ताना हो चलता जाता; मस्ताना हो चिल्लाता,
मस्ती में मैं बातें करता; पीकर मस्त हो जाता।
मस्त हूँ मैं; मस्ताना यह मदिरा का संसार है।
मदिरा, मदिरा, मदिरा तेरा मस्ताना यह प्यार है।
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