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आप कहो कह दूँ सविता हृद को लगते वह चँद्र पिया रे।
बुद्धि विवेक बड़ी शुचिता उर के सुर भी लगते अति प्यारे।
कोमल सी छवि है प्रिय की नयना सुबहो नित साँझ निहारे।
प्राण समान बसे हिय में मम साँस पिया मृदु नाम उचारे।
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पावन प्रेम सदा सिर धारण देव झुके चिर नेह सहारे।
शब्द प्रवाह करे मसि से लिख छंद रचे प्रतिमान बना रे।
मैं मति मूढ़ सभी बिसरा सुधि सद्य मुझे पिय अंक लगा रे।
प्रेम समान नहीं जग में जड़ चेतन में मन में रमता रे।
#आशा अमित नशीनेराजनांदगाँव
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