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चाह है तेरे लिए कोई गीत गाऊँ
शब्दों से पाषाण में स्पंदन जगाऊँ
मौन के भी कंठ में जो स्वर जगा दे
अद्भुत, आलौकिक सुर कोई ऐसा सजाऊँ
भूमि के उर तप्त को कर दे जो शीतल
व्योम की किसी अप्सरा की भाँति चंचल
धवल, पावन चंद्रिका सा रूप अतुलित
जो बढ़ाए मिलन की उत्कंठा प्रतिपल
कपोल-कल्पित विश्व में करके मैं विचरण
मंद-मंद मन ही मन में मुस्कुराऊँ
मौन के भी कंठ में जो स्वर जगा दे
अद्भुत, आलौकिक सुर कोई ऐसा सजाऊँ
किसी दुल्हन सा दिव्य श्रृंगार करके
आई हो तुम नयनों में अभिसार भरके
ऐसे चल दी पल दो पल मेरे पास रूककर
समय की मुष्टि से जैसे रेत सरके
प्राप्त हो जाए यदि सहचर्य तेरा
प्रत्येक रात्रि को मैं दीपोत्सव मनाऊँ
मौन के भी कंठ में जो स्वर जगा दे
अद्भुत, आलौकिक सुर कोई ऐसा सजाऊँ
दृगों को मेरे प्रणय-रश्मि कब रंगेगी
युग-युगांतर की प्रतीक्षा कब फलेगी
मर्त्य में आभास दे जो शाश्वत का
ऐसी मलयानिल न जाने कब चलेगी
तेरे मन-मंथन से उपजे सुधा-रस का
पान करके मैं चिरंजीवी कहाऊँ
मौन के भी कंठ में जो स्वर जगा दे
अद्भुत, आलौकिक सुर कोई ऐसा सजाऊँ
भरत मल्होत्रा
परिचय :-
नाम- भरत मल्होत्रा
मुंबई(महाराष्ट्र)
शैक्षणिक योग्यता – स्नातक
वर्तमान व्यवसाय – व्यवसायी
साहित्यिक उपलब्धियां – देश व विदेश(कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा “दीपशिखा सम्मान”, “शब्द कलश सम्मान”, “काव्य साहित्य सरताज”, “संपादक शिरोमणि”
झांसी से प्रकाशित “जय विजय” पत्रिका द्वारा ” उत्कृष्ट साहितय सेवा रचनाकार” सम्मान एव
दिल्ली के भाषा सहोदरी द्वारा सम्मानित, दिल्ली के कवि हम-तुम टीम द्वारा ” शब्द अनुराग सम्मान” व ” शब्द गंगा सम्मान” द्वारा सम्मानित
प्रकाशित पुस्तकें- सहोदरी सोपान
दीपशिखा
शब्दकलश
शब्द अनुराग
शब्द गंगा
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