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आज के दौर की तालीम जो सरकारी है ,
उससे क्या फ़ायदा वो तो बस बाज़ारी है ।
काम आती है आग पेट की बुझाने को ,
है नही क़ौम की परवाह न ज़िम्मेदारी है ।
होड़ सी है मची डिगरी को हड़प लेने की
, देश में भीड़ है हर ओर बेरोज़गारी है ।
पा गया नौकरी वो कर रहा है ऐश मगर ,
इसलिये लूट मार और काला बाज़ारी है ।
कह रहे जिसको सभी लोकतंत्र वो भी तो ,
वोट की राजनीति आँकड़ो की बाजीमारी है।
कैसे सुधरेंगे ये हालात यही सोच के हम ,
मशविरा कर रहे हैं मेरी समझदारी है ।
डा० नीलिमा मिश्रा
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