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झूठा देखो चल रहा सबको ले के साथ।
हुनरमंद है बड़ा , छल रहा सबको एक साथ।।
मजबूरी में है लोग बहुत जो खड़े झूठ के साथ।
चंद रुपयों के मोह में अब सब चले झूठ के साथ।।
सब बंदर की तरह नाच रहे,हुनरमंद डुगडुगी बजाए।
आत्मसम्मान खोकर बंदर बेचारा गुलाटी खूब लगाए।
शर्म करो लोगो कुछ अपनी भी अक्ल अब तुम लगाओ।
माया के मोह में आकर ना अपना आत्मसम्मान गवाओ।।
रुपयों की डुगडुगी जब से मदारी के हाथ मे आयी।
तब से लेकर छड़ी बेशर्मी की,बंदर को खूब नचाये।।
नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)
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