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कुछ इस कदर आँखो के सामने मंजर बदल जाता है ।
अभी पलके खुली हुई थी तब सब कुछ खुशियों से भरा था।
एक जरा आँखे झपकाई तो दुखो का शैलाब उमड़ आता है।
अपने बुने सपने पूरे ना होने पर जब आँखे लाल हुई।
तब अपनी ही आँखो का लहू ,
अश्क बनकर अपनी ही आस्तीन पर उतर आता है ।
आदत जिसे है नजरे झुकाकर लोगो की बात सुनने की।
नजरे उठा कर भी उसका आत्मसम्मान ना बच पाता है।।
हर एक रिश्ता मजबूत नजर आता है आजकल तभी तक।
जब तक मदारी की डुगडुगी पर बंदर नाच दिखाता है।।
#नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)
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