जब से मी टू का वायरस फैला है, तब से अच्छे-अच्छो के कच्छे उतर कर खूंटी पर टंग रहे हैं। जिनके चौखटां पर लोगों को अगाध श्रद्धा का भाव था, वह भाव-भजन बेआबरु हो कर गंदे गटर में सरकता जा रहा है, बहता जा रहा है। अब खुदा खैर करे जिनकी सालियां, बाहर वालियां, आफिस वालियां, फेसबुक वालियां दूर-दूर रही वर्ना उनके भी नक्कारखाने का नगाड़ा बज जाता। ये भी कह सकते हैं उन पर खुदा की मेहरबानी रही वर्ना आज मी टू की छीछालेदर में दैया-दैया रे कर रहे होते और अच्छी-खासी शोहरत का फालूदा या रुह आफ्जा बन रहा होता।
मेरे परम मित्र भोंदू परसाद मेरे घर उस दिन आए लम्बी आह भरते हुए बोले- भैया काम वाली बाई से अब डर लगने लगा है। कल सौ एडवान्स मांग रही थी पनसौआ उसे दे मारा, तब खींसे निकाल कर आंखों में आंखें डालकर बोली- जीते रहो ऐसे ही देते रहो। फिर नजाकत से मटकती चली गई। मेरी तो जान सूखी जा रही है। पिछले साल होली में ठिठोली करते हुए उसके साथ रंगों से उसके अंगों पर थोड़ी लीपा-पोती कर ली थी। अब डर लग रहा है जानी कि कहीं इसे मी टू का मिट्ठू टें-टें करता हुआ न मिल जाए और फिर मेरी पें-पें हो जाए। यही डर लिए दिल पर हजारों कुन्टल गम लिए घूम रहा हूं। अब ऐसा लग रहा है कि इस दिवाली में मेरा दिवाला मी टू वाले करा के ही रहेंगे।
मैंने दिलासा दी- खामखा टेंशन न लो बरखुरदार तुम्हारी काम वाली बाई फेसबुक नहीं चलाती होगी और न वो पढ़ी -लिखी होगी। माथा पीट कर बोले- इसी बात का डर है साईं कि ज्यादातर फेसबुक अनपढ़ ही चला रहे हैं। अगर अनपढ़ न चला रहे होते तो कहीं ये वायरल हो गया वो वायरल हो गया से सैंकड़ों लफडे़ न होते। आजकल यह मी टू वाला लफड़ा मेरी सांसें रोके पड़ा है। जोर-जोर से कलेजा खींचे पड़ा है। बहुत डर लग रहा है कहीं मेरी बाई को कोई पढ़ा न दे, बरगला न दे और फिर वो मुझसे आकर कहे बाबू जी! दस हजार दो वर्ना मी टू के दलदल में तोप दूंगी। मैंने कहा- खुदा बड़ा कारसाज है उसके घर देर है अंधेर नहीं। अगर आप की नीयत में खोंट रही होगी तो फंसोगे वर्ना हरि कीर्तन करो सिर में अमिताभ की तरह नवरत्न तेल डाल कर कर खोपड़ी कूल-कूल रखो। सारी टेंशन को पेंशन लेने भेजो।
भोंदू तो उदास उठकर चले गये पर जाते-जाते मेरे दिल की धड़कन बढ़ा गये इस साल मैंने भी साली के साथ होली खेली थी अब मैं अपनी साली का फेसबुक प्रोफाइल खंगाल रहा था।
#सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर खीरी