अपनी आदतें,
स्वयं की मांग,मोहलत,स्वभाव,व्यवहार…
शेष नही रहता…?
शामिल करते नहीं
ओरों की चाह वो फिक्र
किसी की परवाह..
खुद-से-खुद उलझे रहते
दिखती नहीं कोई डगर…
बदलाव नहीं अपनाते,
नजरों से बेखबर रहते…
ओरों के बेरंग नजारे रंगीन वो लगते
खटास भरी महफिल
खुद के सप्तरंगों को हराते
या..स्वयं से दूर भागते..
कैक्ट्स से बरामदे सजाते
रुपहले परदों को देख
मन-ही-मन ललचाते..
अनजाने कदमों संग हम,
क्यों..? जाने-पहचाने से होते,
परायेपन को गले मिलाते
औपचारिकता छोड़कर
दूरी अपनो से बढ़ाते..
चौखट क्यों भूल जाते
गैरों की बगियां वो बहार सजाते
मौन शब्दों का संवाद कटूक निबौली होंठों पर रखते
ऐसे क्यों हम जीते…
अपनो को ही भूलते…
तुम जीते..वो भी जीते…
हम जीते,तो सबकी शान बढ़ाते..।।
#उमा मेहता त्रिवेदी
परिचय : इंदौर में रहने वाली श्रीमति उमा मेहता त्रिवेदी ने एमएससी और बीएड किया हुआ है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख,ग़ज़ल और रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। आपको भारत के प्रतिभाशाली &गौरवशाली साहित्यकार पुरस्कार ‘अमृत सम्मान’ से और कृति प्रकाशन से भी सम्मानित किया गया है। अब तक चार साझा संग्रह प्रकाशित हो गए हैं। आपको ८० प्रतिशत रचनाएँ,लेख एंव ग़ज़ल के साथ ही गाने और व्यंग्य भी लिखने का शौक रखती हैं। लिखना और पढ़ना इनकी उपासना ही नहीं, वरन पसंद भी है। कई वेबसाईट पर भी इनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।