गाय को राष्ट्र्माता घोषित कराने ‘आॅक्सीजन’ का अजब तर्क !

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कम से कम इस मामले में उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने मोदी सरकार से लीड ले ली है। वहां की विधानसभा ने गाय को ‘राष्ट्रमाता’ घोषित करने का  प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर केन्द्र सरकार को भेज दिया है। इस बारे में अंतिम फैसला केन्द्र सरकार को करना है। इसके पक्ष में राज्य की पशुपालन मंत्री रेखा आर्य ने जो तर्क दिए हैं, उसके मुताबिक गाय के गोबर और गोमूत्र में औषधीय गुण होते हैं। गाय हमारी आस्था का प्रतीक है। गाय को मां का रूप माना गया है। किसी बच्चे को मां का दूध उपलब्ध न हो तो गाय का दूध सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। गाय में 33 करोड़ देवी- देवताअों का वास है। गाय के दर्शन से ही सारे पाप दूर हो जाते हैं। पशुपालन मंत्री ने यह भी कहा कि यदि गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा दिया जाता है कि उत्तराखंड सहित देश के 20 राज्यों में लागू गोवंश संरक्षण कानून पूरे देश में लागू होगा और उसके संरक्षण को बल ‍िमलेगा। गाय कई लोगों के  जीविकोपार्जन का जरिया भी है। यहां तक सब मान्य। रेखाजी ने एक ‘अनूठा’ तर्क यह भी दिया कि गोमाता ही ऐसा पालतू पशु है, जो कार्बन डाय आॅक्साइड लेता और आॅक्सीजन छोड़ता है। पारित प्रस्ताव पर टिप्पणी करते हुए विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष इंिदरा ह्दयेश ने कहा कि ‘हम सभी गाय का सम्मान करते हैं लेकिन मैं यह समझने में असमर्थ हूं कि बीजेपी गाय को राष्ट्र माता घोषित करके क्या साबित करना चाहती है? प्रदेश के गोशाले बुरी स्थिति में हैं और बूढ़ी होने के बाद लोग गायों को उनके भाग्य पर छोड़ देते हैं। प्रदेश में पशुचिकित्सकों की भी कमी है। उन्होने कहा कि  यह भी सुनिश्चित किया जाए कि राष्ट्रमाता का दर्जा देने के बाद भी गाय को अपमानित न होना पड़े और वह कहीं इधर-उधर भूख से व्याकुल घूमती या दम तोड़तीसे तड़पती न‍ दिखाई  दे।
दिलचस्प बात यह है कि गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित करने का अधिकृत प्रस्ताव उस राज्य से आया है, जहां गोवंश की संख्या यूपी, एमपी, बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्यों की तुलना में काफी कम है। 2012 की पशुगणना के आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में गोवंश की संख्या 10 लाख से ज्यादा है। लेकिन गाय के संदर्भ में खास बात यह है कि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य  में गाय की एक खास नस्ल ‘बद्री’ पाई जाती है, जो गिर और साहीवाल ‍जैसी खूब दूध देने वाली नस्ल की गायों को टक्कर दे सकती है। नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जेनेटिक रिसोर्स (एनबीएजीआर) ने बद्री गाय को सूचीबद्ध किया है। राज्य में भैंस और गायों में बद्री गाय पहला ऐसा दुधारू जानवर है, जिसे एनबीएजीआर ने ब्रीड की श्रेणी में शामिल किया है। इसकी प्रजनन क्षमता भी गायों की अन्य नस्लों की तुलना में ज्यादा पाई गई है। आईआईटी रूड़की के वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि बद्री गाय का दूध गुणकारी होता है। वेल्यू एडिशन टू दि हिल-केटल ऑफ उत्तराखंड यूसिंग  बॉयोटेक्नोलॉजिकल इन्वेस्टिगेशन प्रोजेक्ट’ के तहत   एक शोध में पता चला कि पहाड़ी बद्री गाय के दूध में 90 फीसद ए-2 जीनोटाइप बीटा केसीन पाया जाता है, जो डायबिटीज और हृदय रोगों को रोकने में कारगर है। बद्री गाय एक बार में एक से तीन किलो तक दूध देती है। खुद उत्तराखंड की रावत सरकार ने राज्य के 13 जिलो में ज्यादा दूध देने वाली 28 हजार संकर नस्ल की गायें बांटकर दूध उत्पादन बढ़ाने का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम चलाया हुआ है।
इन तमाम सकारात्मक बातों और राज्य में गोहत्या पर कानूनी प्रतिबंध के बाद भी राज्य में गोहत्या की खबरें आती रहती हैं। इसकी गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि उत्तराखंड हाई कोर्ट ने स्वयं को राज्य में गायों का कानूनी अभिभावक घोषित किया हुआ है। गायों के संरक्षण के लिए कोर्ट ने जरूरी दिशा निर्देश भी जारी किए हैं। वैसे भी उत्तराखंड सरकार राज्य की पर्यटन मार्केटिंग ‘देव भूमि’ के रूप में करती है। क्योंकि हिंदुअों के कई बड़े तीर्थ इसी राज्य में पड़ते हैं। चार धाम का बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में ही आता है। इस लिहाज से राज्य की गायें स्वत: देवतुल्य हो जाती हैं। गायों की समुचित देखभाल हो, देवता न सही, दुधारू और ममतामय पशु के रूप में भी उनका ठीक से पालन-पोषण हो, गो उत्पादों की पर्याप्त मार्केटिंग हो, दूध का उत्पादन बढ़े और गायों के प्रति अटूट आस्था का हाथ थामकर गोपालकों की आमदनी भी बढ़े, इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। लेकिन गाय इसलिए भी राष्ट्रमाता बने क्योंकि वह आॅक्सीजन छोड़ती है, अजब और हास्यास्पद तर्क है। देश को सबसे पहले यह ‘ज्ञान’ राजस्थान के शिक्षा मंत्री ज्ञानदेव आहूजा दे दिया था। गोमाता के इस ‘दुर्लभ गुण’ के दावे में वैसी ही अति अल्प सचाई है जैसे कि केंचुए को नाग देवता मानकर पूजा जाए। वैज्ञानिक तथ्य यह है कि गाय तो क्या दुनिया में कोई प्राणी कार्बन डाई आक्साइड लेकर जिंदा नहीं रह सकता। तो फिर गाय यह सब कैसे कर लेती है? क्या वह कोई दैवी वरदान लेकर जन्म लेती है या फिर निस्सीम गोभक्ति उसमें चमत्कार की शक्ति पैदा कर देती है? इन सवालों का जवाब यह है ‍कि सभी प्राणी वातावरण से जो प्राणवायु लेते हैं, उसमें आॅक्सीजन केवल 20 प्रतिशत होती है। 78 फीसदी नाइट्रोजन और मात्र 0.3 फीसदी कार्बन डाई आॅक्साइड होती है। गाय भी जितनी आक्सीजन लेती है, उसका सौ फीसदी अवशोषण नहीं कर पाती, क्योंकि गाय सहित सभी पशुोअो  के फेंफड़े ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं होते। जो थोड़ी-बहुत अाॅक्सीजन बाकी रह जाती है, वह कार्बन डाय आॅक्साइड के रूप में छोड़ी गई सांस के साथ बाहर निकल जाती है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है ‍िक गाय ‘आॅक्सीजन का सिलेंडर’ भी है। जो मामूली आॅक्सीजन निकलती है, वह नैसर्गिक ‍िक्रया है और गाय किसी राष्ट्रमाता घोषित होने की लालसा में ऐसा नहीं करती। अगर गायों द्वारा छोड़ी गई किंचित आॅक्सीजन से ही वातावरण की शुद्धि संभव होती तो बाकी पशुअो को पालने की जरूरत ही  नहीं पड़ती।
मोदी सरकार उत्तराखंड सरकार की इस गो आस्था को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में किस रूप में लेगी, कहना मुश्किल है। क्योंकि यह सरकार अभी गोहत्या पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध ही नहीं लगा सकी है। ऐसे में गोमाता को ‘राष्ट्र्माता’ घोषित करना कोई आसान बात नहीं है। गाय को राष्ट्रीय पशु भी घोषित करना मुश्किल है, क्योंकि यह जगह भी दुर्गा मैया के वाहन और जंगल  के राजा शेर के लिए आरक्षित है। रहा सवाल तर्कों को दरकिनार कर महज  आस्था व मान्यताअों के आधार पर गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने का तो इस बिना पर गाय को ‘राष्ट्रमाता’ तो क्या ‘विश्वमाता’ भी घोषित कर दिया जाए तो कोई क्या कर सकता है?
 #अजय बोकिल 

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