आईने पर यक़ीन रखते हैं ,
वो जो चेहरा हसीन रखते हैं|
आंख में अर्श की बुलन्दी है ,
दिल में लेकिन ज़मीन रखते हैं|
दीन-दुखियों का है खुदा तब तो ,
आओ हम खुद को दीन रखते हैं|
जिनके दम पर है आपकी रौनक ,
उनको फिर क्यों मलिन रखते हैं|
विषधरों के नगर में रहना है ,
हम विवश हो के बीन रखते हैं|
ये सियासत की फ़िल्म है जिसमें ,
सिर्फ़ वादों के सीन रखतें हैं|
डॉ. दिनेश त्रिपाठी `शम्स’ का जन्म मंसूरगंज (बहराइच,उत्तर प्रदेश) में हुआ है|
एमए(हिन्दी),बीएड,पीएचडी(हिन्दी),यूजीसी ‘नेट’ शिक्षा हासिल की है|
कुछ वर्षो तक प्रसिद्द समाचार-पत्र दैनिक जागरण के लिए पत्रकारिता करने के बाद इसे छोड़कर शासकीय सेवा में अध्यापन कार्य में लग गए| आपकी सम्प्रति वरिष्ठ प्रवक्ता (हिन्दी) के रूप में जवाहर नवोदय विद्यालय (बलरामपुर,उत्तर प्रदेश) में है|
पुस्तकें–जनकवि बंशीधर शुक्ल का खड़ी बोली काव्य (शोध प्रबंध ),आँखों में आब रहने दे (गजल संग्रह ) के साथ ही ‘शुआ-ए-उम्मीद’ पत्रिका के विशेषांक के सम्पादन सहयोगी रहे हैं| आपकी रचनाएँ दैनिक जागरण,अमर उजाला सहित लगभग ६०० पत्र-पत्रिकाओं और अन्य समाचार पत्रों में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं|साथ ही लगभग दो दर्जन काव्य संकलनों में कविताएं संकलित-प्रकाशित हैं|
दर्जन भर से अधिक पुस्तकों में भूमिका लेखन भी किया है| आपको
सम्मान के रूप में साहित्यिक संस्था काव्य धारा,सारस्वत सम्मान,दान बहादुर सिंह सम्मान,राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान, मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए प्रशंसा-पत्र सहित जनकवि बंशीधर शुक्ल सम्मान भी प्राप्त हुआ है| आप घुघुलपुर(देवरिया-उत्तर प्रदेश ) में रहते हैं|
मातृभाषा पर मेरी ग़ज़ल को स्थान देने हेतु आभार
विनम्र
डॉ. दिनेश त्रिपाठी शम्स
आंख में अर्श की बुलन्दी है ,
दिल में लेकिन ज़मीन रखते हैं|
अच्छी ग़ज़ल है
शम्स जी बहुत ही सुंदर रचना है। सराहनीय…….