ऐ मेरे मालिक
आता हूँ तुझसे मिलने,
रोज तेरे मंदिर में
कुछ दुख के बहाने-मुफ़लिसी के बहाने
खुद को नई राह दिखने
तो कभी तुझे जगाने,
कभी खड़ा होता हूँ तेरे सामने
रोता हूँ-दुआएं मांगता हूँ,
जिसने जो कहा
वही जतन करता हूँ,
पर बेकार जाती हैं मेरी अर्ज़ी
शायद तेरी नहीं हो मर्ज़ी,
हालांकि दिल नहीं मानता है
तू तो सबकी सुनता है
पर ये बेरुखी मेरे से ही क्यों ?
मेरे अंदर बड़ी उथल-पुथल-सी मचती है,
पर तेरे चेहरे से नज़र भी नहीं हटती है
इसी जद्दोजहद में कुछ सुनने की कोशिश करता हूँ,
कुछ पहचानने की कोशिश करता हूँ
कुछ समझने की कोशिश करता हूँ,
अहसास की लौ जलती-सी दिखती है
तेरे चेहरे की आभा बदलती-सी लगती है,
तेरी आँखें मुझे गमगीन लगती हैं
मै असहज महसूस करता हूँ,
पूरी दुनिया का मालिक गमगीन है ?
फिर मेरी क्या बिसात,
ठहर से जाते हैं मेरे जज़्बात
तभी बड़ी प्यारी-सी आवाज़ सुनता हूँ,
सांसें रुक जाती हैं
धड़कनें तेज़ हो जाती हैं,
मालिक ने मेरी आवाज़ सुन ली
लगता है कोई मेरे कानों में कह रहा है,
मेरे बंदे, मेरे चाहने वाले
तू रोज़ मुझे देखने आता है,
कुछ न कुछ मांगने आता है
चल,एक बात बता-
कभी खुद को देखने की कोशिश की है ?
खुद को समझने की कोशिश की है ?
शायद नहीं…
मेरी मान,हो जाएगा धनवान,
बस, ऐसा करके देख
कर पाएगा ? काम नहीं है आसान,
पर है ये रामबाण॥
#राजेश कुमार सिन्हा
परिचय : राजेश कुमार सिन्हा की जन्म तारीख ७ जुलाई १९६२ है। आपका निवास पटना (बिहार)है। आपने स्नातकोत्तर के साथ ही पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कम्पनी में वरिष्ठ अधिकारी हैं। छ्न्द मुक्त कविता और फ़िल्म से संबंधित लेख लिखना आपकी पसंद है। लेखन में आपकी ५ पुस्तक प्रकाशित है तो, दो दर्जन पुस्तकों का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद हो चुका है। आपके खाते में २० वृत्त चित्र फ़िल्मों के लिए कमेंट्री लेखन दर्ज है। इसमें एक को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला है। लेखन का उद्देश्य ‘स्वान्तह सुखाय’ है।