रंग दिखलाऊँ अब कौन-सा,
दर्शाएगा जो मेरी छवि को..
भड़कीला ज्यादा ना लगे जो
भा जाए हर एक किसी कोl
.
रंग कहूँ सूरज-सा मुझको,
भाता है रातों में तो क्या..
कहूँ जो धोया काला रंग,
दौड़ता है दिन में तो क्याl
.
सच तो है एक रेखा पीली-सी,
भाती है दिन-रात कवि को..
रंग दिखलाऊँ अब कौन-सा,
दर्शाएगा जो मेरी छवि कोl
हरा रंग दूँ पत्ती से छिपकर,
और कांटे चिढ़ जाए तो क्या..
चुनूँ भूरा जो मिट्टी से लड़कर,
नदी बुरा फिर माने तो क्याl
है सत्य वही बस एक रंग,
रोशन करता जो प्रीति को..
रंग दिखलाऊँ अब कौन-सा,
दर्शाएगा जो मेरी छवि कोl
#सत्येन्द्र कुमार