अधरों पर अपने उमंग लिए,
बदन मरीन उमड़ता तरंग लिए..
नयनों की पिचकारी लिए टोली,
गोपियों की कृष्ण संग होली।
भावनाओं के रंग हैं बड़े निराले,
कान्हा भंगिमाएं लिए हैं मतवाले..
संकेतों की अभिव्यक्तियाँ अबोली,
भींग गई राधा संग सखी अलबेली।
नयनों की रंग धार खुमार लिए तेज,
कपोलों के गुलाल,सभी रंग लगे निस्तेज..
बांहों की अबीर करे अब अजब ठिठोली,
कदम भागे दौड़े,फिर साथ वही हो ली।
चपल,चतुर,चहुरंगी प्रीत चरमराई,
खिले महके अंग दे रहे हैं प्रीत बधाई..
प्यार है,सम्मान है,अभिमानी ऋतु निम्बोली,
रंगों से साज दिया,प्रिये शुभ होली।
#धीरेन्द्र सिंह
परिचय : धीरेन्द्र सिंह का मुंबई महानगर में रहते हुए हिन्दी के प्रति विद्यालय स्तर से ही आकर्षण बढ़ता-गहराता गया। यही वजह है कि,हिन्दी साहित्य ने आपको एक सोच ही नहीं दी,वरन व्यक्तित्व को एक आधार प्रदान किया है।इनके अनुसार अध्यापन करते-करते बैंकिंग में राजभाषा अधिकारी बन जाना आज तक आश्चर्यजनक परिर्वतन है। नौकरी के दौरान अनेक स्थानान्तरण ने देश में हिन्दी के विविध रूपों को समझने दियाहै तो राजभाषा हिन्दी के प्रति अपना योगदान देना अब इनकी आदत हो गई है। आपकी यही इच्छा है कि हिन्दी साहित्य की चलनी से राजभाषा रूपी चाँद को सँवरते हुए देखते रहें।