लाॅकडाउन सफल हो रहा है। जिसके कारण भारत में कोरोना तीसरी स्टेज पर नहीं पहुंचा है। जिसका श्रेय निःसंदेह भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और दिल्ली के माननीय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी को जाता है। जिन्होंने समय रहते कोरोना को महामारी मानते हुए लाॅकडाउन की घोषणा कर दी थी। हालांकि कोरोना समाप्ति के उपरांत राष्ट्र को आर्थिक तंगी से अत्याधिक जूझने की सम्पूर्ण संभावनाएं हैं। जिसे 'जान है तो जहान है' की कहावत को चरितार्थ मानते हुए झेलना होगा।
चूंकि लाॅकडाउन को युद्ध की संज्ञा दी गई है। इसलिए राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हुए केंद्रीय कर्मचारियों एवं पेंशनभोगियों का अगामी महंगाई भत्ता बंद करने की आलोचनाएं तर्कहीन हैं। यही नहीं बल्कि राष्ट्रहित की कसौटी पर रक्षा बजट से संभावित 40 प्रतिशत कटौती भी खरी उतरती है।
लाॅकडाउन में एक बिंदु पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि 70 वर्षीय भारतीय स्वतंत्रता 40 दिन के कोरोन युद्ध में भूखी एवं जन्मजात नंगी हो गई है। जिसके लिए बच्चों को अपनी गुल्लकें तोड़नी पड़ रही हैं। इसके उपरांत भविष्य में भारतीय महिलाएं राष्ट्रहित में अपने मंगलसूत्र दान करेंगी।
जिससे एक गम्भीर प्रश्न पैदा हो रहा है कि विभिन्न भारतीय सरकारें भविष्य में विपरीत परिस्थितियों में उत्पन्न विपत्तियों से जूझने के लिए भविष्य निधि के लिए कुछ भी बचा कर नहीं रखती।
जिससे प्रश्र उठना स्वाभाविक है कि सरकार हैंड टू माउथ अर्थात निर्धनता का जीवन क्यों जी रही है और कब से जी रही है? इतने सांसदों और विधायकों की फौज कोरोन में अपनी क्या विशेष भूमिका निभा रहे हैं?संसद व विधानसभाओं में लड़ने, पक्ष-विपक्ष खेलने को ही क्या सशक्त लोकतंत्र कहते है?
उल्लेखनीय है कि देश के उपरोक्त गंभीर दुर्भाग्यपूर्ण प्रश्नों पर विपक्ष और मीडिया भी सम्पूर्ण चुप्पी साधे हुए हैं। जिससे प्रमाणित होता है कि लोकतंत्र की विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता नामक चारों सशक्त स्तम्भ एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।
हम राष्ट्र के नागरिक हैं। जो संभावनाओं से ही पेट भर लेते हैं। इसलिए सकारात्मक संभावनाओं की आशा करते हैं कि भविष्य में ऐसी विषम परिस्थितियों के लिए धन संचय की कई बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई जाएंगी। जैसे जब तक राष्ट्र आर्थिक पटरी पर नहीं आ जाता तब तक किसी भी प्रकार के चुनाव न करवाए जाएं और माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी को ही राष्ट्र का कार्यभार सौंपा जाए। इत्यादि-इत्यादि
इंदु भूषण बाली