पत्रिका समीक्षा ……………..
किसलय साहित्यिक संस्था की अनियतकालीन पत्रिका शब्दध्वज ने कवि एवं सम्पादक पंकज पटरियां की कविताओं पर केंद्रित काव्य संग्रह ” धूप आती तो है ….” का प्रकाशन किया है।
नर्मदांचल के साहित्य और पत्रकारिता जगत में पंकज पटेरिया एक लब्ध प्रतिष्ठित नाम है । शब्द ध्वज जिसके सम्पादक वे स्वयं ही है, ने अनेक लेखकों की रचनाओं पर अपने अंक केंद्रित किये हैँ । उसी श्रृंखला में उनका यह काव्य संग्रह “धूप आती तो है ….” का प्रकाशन किया गया है । इस संग्रह में उनकी अनेक छोटी बड़ी वे रचनाएँ हैं जिन्हें उनकी प्रतिनिधि रचनाएँ कहा जा सकता है ।
डॉक्टर परशुराम शुक्ल ” विरही ” ने श्री पटेरिया पर लिखते हुए कहा है – ” इस कविता संकलन में प्रस्तुत दो प्रकार की कविताएं है । एक तरह की कविताएं वे है – जिनमे कवि प्रत्यक्ष या परोक्षतः अपने को संबोधित करता है और दूसरे प्रकार की वे कविताये हैं , जिनमे वह दूसरों को संबोधित करता है। इन कविताओं में व्यंग का बारीक़ पुट भी होता है । ”
जबकि मध्यप्रदेश संदेश के सम्पादक मनोज खरे इन रचनाओं का आंकलन करते हुए कहते हैं – ” दरअसल पंकज जी बहुत आम बिरादरी के रचनाकार है। उनकी रचनाएँ उनके स्वभाव की तरह किलष्टता से बहुत दूर है। उनकी रचना धर्मिता इतनी सरल और सहज है जो सामान्य जन को भी बांध लेती है , उसके दिल में उतर जाती है । पंकज पटेरिया की सम्वेदनशीलता ने उन्हें कवि बनाया और भावना प्रधान परीस्थतियो ने उनकी संवेदनाओं को गीत , गजलों और कविताओं में ढाल दिया जिससे वे सीमित से असीमित होते कवि प्रतीत होते हैं ।
श्री मनोज खरे जी से मैं भी सहमति रखता हूँ । जिले के वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुशवाह पंकज जी की रचनाओं को आत्मसात करते हुए दिखते हैं । श्री कुशवाहां कहते है – ” वे जब बोलते तो मैं आँखे बंद कर उन्हें सुनता समझता और आत्मसात करता हूँ । पत्रकारिता उनके लिए एक आवरण मात्र है। जबकि उसके पीछे एक सह्रदय कवि का एहसास मुझे सदा रहा है । ”
अलावा इनके पंकज पटेरिया भी अपनी बात में लेखन और शब्द की महिमा बताते है , वे कहते है – ” शब्द कि महिमा अनंत है। अक्षरों से उदघाटित होते ही शब्द सम्पूर्ण ब्रम्हांड में फैल जाते हैं। मनुष्य का जन्म मरण होता है इसलिए शब्द कभी नही मरते । शब्द हँसते है तो शब्द रुलाते भी है शब्द कि महिमा को हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों ने जाना था और मंत्र विद्या की खोज की थी। माँ नर्मदा की कृपा से मुझे भी शब्द की उपासना का अवसर मिला और बालपन की उम्र से ही शब्द की उपासना करने लगा ।”
सच ही कहा है श्री पंकज पटेरिया ने उनकी शब्द साधना का ही यह प्रतिफल है कि वे 1964 से निरन्तर सृजन रत है । इसी कड़ी में उनका यह पांचवा काव्य संग्रह – ” धूप आती तो है….” प्रकाशित हुआ है । श्री पटेरिया 1972 से ही निरंतर पत्रकारिता में भी सक्रिय है जिसके चलते उन्हें अनेक बार सम्मानित भी किया जा चुका है।
उनके इस काव्य संग्रह ” धूप आती तो है …” में संग्रहित हर कविता में कोई न कोई सन्देश दिखाई देता है । अपनी कविता ” गंध पावन ” में वे कहते है-
मंदिर ,मस्जिद ,चर्च , गुरूद्वारे भले हो अलग
कपोतों की टोलियां सब जगह जाती तो है ।
एकता का कितना बड़ा सूत्र है यह । इसी तरह अपनी एक अन्य कविता में उनका विश्वास देखिए –
हाथ बंधें हैं और पांव में गहरी लगी फाँस भी है ,
लेकिन मैं मंजिल छू लूंगा, मुझको यह विश्वास भी है।
श्री पटेरिया का यह विश्वास हम सबका विश्वास बने और वे निरंतर सृजनरत रहें ताकि पाठकों और समाज को सद्साहित्य से प्रेरणा मिलती रहे। उनकी संग्रहित रचनाओं का भाव भी यही है।
#देवेन्द्र सोनी , इटारसी।