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बरस बीते आज़ाद हुए पर,
ख़्याल अभी तक ग़ुलाम बने हैं ।
आज़ाद मुल्क के बाशिंदे हम,
क्यों राम, रहीम, सतनाम बने हैं ।।
ज़ात-पात में बांटा ख़ुद को,
क्यों धर्म के ठेकेदार बने हैं ।
मुल्क़ को समझें अपना घर,
क्यों यहां किरायेदार बने हैं ।।
भूख़ से कराहता बचपन,
सुनसान सड़क पर सोता है ।
रोता बिलखता भविष्य देखकर,
भारत मां को दुःख होता है ।।
ये कैसी आज़ादी है जिसमें,
क्यों मौन और बेजान बने हैं ।
पत्थर हुए जज़्बात हमारे,
क्यों हम क्रूर शैतान बने हैं ।।।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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