इससे पहले कोई दुश्मन ,मां की छाती तक बढ जाये
फिर कोई बन्दा बैरागी पर, पागल हाथी चढ जाये
फिर कोई चौहान चूक जाये ,मूल्यों के फेरो में
और दहाडते रह जाये ,हम कागज के शेरो में
तब डर लगता है मुझको उस गौरी की गद्दारी का
आस्तीन में छिपकर बैठी ,जहरीली उस यारी का
तब याद आती मुझको हठी हम्मीर की खुद्दारी
राणा की भलमनसाहत और खिलजी की चालें सारी
फिर चौसर की चालों में,न द्रोपदी की लाज लुटे
फिर कोई अन्धा राजा न दे पाये, आश्नासन झूठे
तब मेरा ये शस्त्र उठाना ,पाप कैसे हो जायेगा
निज स्वत्व की रक्षा करना,शाप कैसे हो जायेगा
मां भारती को लुटती देख, मै मौन कैसेे हो जाउंगा
शस्त्र त्याग कर महाभारत का,द्रोण कैसे हो जाउंगा
मुझको विचलिक कर देती है ,चीखे कश्यप घाटी की
दूध का कर्ज चुकाउंगा ,है सौगंध मुझे इस माटी की
मेरे हाथो मे तो दिखती, छोटी सी एक कटारी है
जो दुश्मन ने पीछे से ,हर बार पीठ पर मारी है
डरते डरते इस दुनिया ,जीना बडा दुश्वारी है
हल्के लोगो के उपर ,बोझ वतन का भारी है
जुल्मी को जुल्मी कहने से,जीभ जहां पर डरती है
छुप छुप रोती मानवता ,दम घोंट जवानी मरती है
#अजीतसिंह चारण
परिचय: अजीतसिंह चारण का रिश्ता परम्पराओं के धनी राज्य राजस्थान से है। आपकी जन्मतिथि-४ अप्रैल १९८७ और शहर-रतनगढ़(राजस्थान)है। बीए,एमए के साथ `नेट` उत्तीर्ण होकर आपका कार्यक्षेत्र-व्याख्याता है। सामाजिक क्षेत्र में आप साहित्य लेखन एवं शिक्षा से जुड़े हुए हैं। हास्य व्यंग्य,गीत,कविता व अन्य विषयों पर आलेख भी लिखते हैं। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं तो राजस्थानी गीत संग्रह में भी गीत प्रकाशित हुआ है। लेखन की वजह से आपको रामदत सांकृत्य साहित्य सम्मान सहित वाद-विवाद व निबंध प्रतियोगिताओं में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार मिले हैं। लेखन का उद्देश्य-केवल आनंद की प्रप्ति है।