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मिथिला की हर नारी सीता
हर नारी में सीता
मां मेरी मैथिली
इस कारण….
माँ मेरी सीता
जन्म कर्म का जोड़ यही
माँ बन गई सीता…
उसने जो जाना सीता
जिसको उसने माना सीता
हमें सीख में दे गई वो सीता
पोथी रामायण की
आदर से पकड़ाकर बोली
बेटी तुम मिथिला की…
मैं ना बताऊंगी और ना
समझाऊंगी
मेरी नज़रों में क्या है सीता…
परिपक्व हो गई अब तुम तो
कौन सा पक्ष सीता का
तुझे है भा रहा…
तेरी नज़रों में है कैसी सीता
बचपन गुज़री,खुशियां यौवन की
अबतक सीता का मर्म ना
मैंने समझा
गार्हस्थ जीवन है अब तो
जोड़ कई संघर्षों का
अहंग अहंग से भिड़ता-लड़ता
ऐसे में क्या कहती सीता…
अब तो मैं भी जीती सीता
खुद में कैसी चीख ये आई
क्यों जन्म मेरा सीता धरा
मेरी नज़रों में सीता
यानी ‘हर बातों में है झुकना’
आज यक्षप्रश्न का मुझ पर
भी प्रहार हुआ
हर संवाद माँ का यानी सीता
फिर याद हुआ
गलत नही तो झुकना कैसा
तर्कों में फिर जवाब हुआ
अब बाबूजी की बारी आई
शालीनता से जो वो कथ्य कही
“ये तो सब है प्रभु की माया…
बेटा स्त्री होती है सही हमेशा
झूठे अहंग को ही हमेशा वो
मान-सम्मान है मानता
तुम पत्नी हो, तुम उसकी हो प्रेमीका
जी जाने दो अहंग के उसको
इस बात को वह भी है जानता
सीता का मर्म यही…
हो तुम परिवार की शीर्ष और आधार
तुम ही बिखर गई तो
कैसे सुदृढ हो संस्कृति और संस्कार
अब तुम सही अर्थों में समझोगी
कौन थी वह सीता
किस मिट्टी से बनी थी मिथिला
माँ यानी सीता मंद-मंद मुस्कुरा रही
बाबूजी यानी नींव की
मजबूती को सराह रही
और मैं अब…
असल मैथिलानी हूँ
बन सीता अपने राम को
संवार रही हूं…
“रामराज्य होगा ” खुद में ये
सोच जगा रही हूं
मतिभ्रष्ट ना होने पाए मेरे राम की
कोशिश मेरी बस उस धोबी के
पहचान की
धन्य है मिथिला…
धन्य है राजा जनक
जो है पिता…
जय हो राम लक्ष्मण जानकी
जय बोलो भगवान की.
#अपर्णा झा
परिचय:अपर्णा झा,मिथिलांचल की बेटी,फरीदाबाद निवासी है.इन्होंने विषय द्वै (फ़ारसी एवं museology क्रमशः दिल्ली के जेएनयू एवम राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान)परास्नातक किया है सम्प्रति ये लेखन कार्य से जुड़ी हुई हैं.अनेकों साझा संग्रह एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं,वेब,अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में इनकी लघुकथा,आलेख,एवं रचनाएं प्रकाशित हुई हैं.सांस्कृतिक स्थलों में भ्रमण और हिन्दुस्ततानी संगीत सुनने का शौक है.पूर्व में इन्हें तीन साल का संग्रहालय के क्षेत्र में कार्य करने का अनुभव है.
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