वसंतकी

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surekha agrawal
नायिका की  शिकायत
सुनो …
एक दिन यही लफ़्ज तुमने
 ही कहे थे मुझसे
अश्रु और मुस्कान
से यदि  घुलती रहोगी तुम फाल्गुन और सावन से
  एक दिन मिलवा दूंगा मै…!
याद है ना तुम्हें जब
मेरा चेहरा लिए अपने हाथों में
पूछे थे कई प्रश्न  तुमने मुझसे..!
हर वह प्रश्न के जवाब ढूँढने निकल
पड़ी थी मै मन के रास्ते और आज तक
भटक रही हूँ उन प्रश्नों के जवाब
पाने को…!
उत्तर मिलते है पर तस्सली नही
मिलती क्योंकि
तुम्हारे हर प्रश्न में छुपा है एक प्रश्न?..!
 एक गहन अनुभूति
एक गहन प्रतिक्रिया
तुम्हारे अन्तस् में छिपी
 वह रहस्मयी  प्रश्नावली…!
जानते हो तुम  मै भटकती
रहूंगी उसी परिधि में
जहाँ नही
होंगे तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर..!
 हाँ जकड़ी रहूंगी मै तुम्हारे
फाग और सावन के अंतर्द्वन्द में…!
मै परिचित होती रहूंगी
तुम्हारे लफ्ज़ो के संसार में
 ढालते रहना फिर  मुझे तुम
  अपने फ़ाल्गुनी रंगीन
  परिहास  से अहसास में…!!!
नाम सुरेखा अग्रवाल
शिक्षा…स्नातक
शहर…..लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
दो साझा संग्रह
कश्ती का चाँद
रूह की आवाज़
अंतरा से स्पंदन
अभिमत मासिक पत्रिका में कई
आलेख रचनाएँ,और लघुककथाएं प्रकाशित
नवप्रदेश, जंनसंदेश मैत्री ,नव एक्सप्रेस,अमर उजाला से रचनाएँ प्रकाशित।कई वेबसाइट्स पर आलेख ।
 लिखना मन को सुकूँ देता हैं और सृजन की शक्ति देता हैं।कलम समाज में एक बड़ा बदलाव का काम करती हैं।उद्देश्य हिंदी को  घर घर तक पहुँचाना।जय हिन्द,जय हिंद

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One thought on “वसंतकी

  1. Mujhe bhi Shikayat hai Umra se ki q mujhe tumse pehle na milayaa
    Tumhara ek 2 Shabd Man ko chhu Jata hai.
    Jeewan ke sabhi pehlu Ko chhu jaati ho.
    Kabhi 2 lagtaa hai jaise mere Man ko padh liyaa tumne.
    Maa Saraswati ki Aseem Kripa hai Tum par.
    M Ur Big Fan.
    Blessings

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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