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आज बुरा है,
कल बद्तर होगा
पर अगला दिन
शायद कुछ उजास हो,
जब खिलेगी चुटकी भर धूप
इस तमसित जीवन में
आएगी बहार इस निर्जन के पतझड़ में,
सुवासित हो जाएगी यह हृदय वाटिका
मोहक रंगीन पुष्पों से
यह उम्मीद ही तो है
जो गहन अंधेरों में भी
एकाकी निरंतर बढ़ते रहने का संकेत देती हैl
हौंसला देती है लक्ष्य में अडिग रहने का,
फिर कभी लगती है अचानक ठोकर-सी,
और थम जाते हैं पाँव
जड़ हो जाती हैं फुदकती तमन्नाएं सभी,
और,
निराशाएं कुछ ही पल में
अपनी रूखी चादरों में लपेट लेती हैं।
तब!
आँखों में कैद बर्फ से जमें आँसू,
छटपटाहट बन निकल पड़ते हैं आजाद होने को
सच!
ये उम्मीदें कुछ नहीं देती
वक्त के चरखे में
उमर कातने के सिवायll
#गुंजन गुप्ता
परिचय : १९८९ में जन्मी गुंजन गुप्ता ने कम समय में ही अच्छी लेखनी कायम की है। आप प्रतापगढ़ (उ.प्र) की निवासी हैं। आपकी शिक्षा एमए द्वय (हिन्दी,समाजशास्त्र), बीएड और यूजीसी ‘नेट’ हिन्दी त्रय है। प्रकाशित साहित्य में साझा काव्य संग्रह-जीवन्त हस्ताक्षर,काव्य अमृत, कवियों की मधुशाला है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। आपके प्रकाशाधीन साहित्य में समवेत संकलन-नारी काव्य सागर,भारत के श्रेष्ठ कवि-कवियित्रियां और बूँद-बूँद रक्त हैं। समवेत कहानी संग्रह-मधुबन भी आपके खाते में है तो,अमृत सम्मान एवं साहित्य सोम सम्मान भी आपको मिला है।
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छा गयी गुरु
बेहतरीन कविता के लिए कवयित्री को बधाई