तुम गगन के चंद्रमा हो…..*

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mukesh dube
पैंतालीस मिनट चला था इंटरव्यू दर्शना का। उसके पहले के सभी उम्मीदवार 10 मिनट में आ गये थे। एक उम्मीद बँधने लगी थी इस नौकरी की।
चार महीने से समर बिस्तर पर है तीन महीने अस्पताल में रहने के बाद। फिजियोथेरेपिस्ट और नर्स भी जरूरी है। हर दो घंटे बाद इंजेक्शन देना होता है। डॉक्टर कहते हैं रीढ़ की हड्डी में चोट लगी है। भगवान की कृपा से यह जिन्दा है। उम्मीद का दामन थामे रहो।
उसी उम्मीद के लिए जरूरी है दर्शना का काम करना। समर के खाते में जमा राशि आवारा परिंदों सी उड़ रही है। कोई सहारा नहीं है।
अगला दिन दर्शना की ज़िंदगी का सबसे अच्छा दिन था। उसने नर्स को समझाया और समर के माथे पर अपने प्रेम की निशानी अंकित कर अॉफिस आई। सेक्शन इंचार्ज ने ज्वाईनिंग के बाद काम समझा दिया था। हर वक्त समर के खयाल के बावजूद कोशिश थी, कोई गलती न हो काम में।
शाम को जब लौटती थी, समर के उदखस चेहरे पर मुस्कुराहट लौट आती थी। नर्स का लौटने का वक्त रहता था। उसके बाद दर्शना नर्स बन जाती थी। एक पल के लिए भी उसके चेहरे पर थकान या परेशानी नहीं दिखती थी। समर की नेचुरल कॉल अटैंड करना। पानी और खाने के साथ हर समय मौजूद रहना और उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर यह विश्वास दिलाना कि तुम्हें कुछ भी नहीं होगा।
तीन महीने हो गए थे अॉफिस और घर सम्हालते हुए।
एमडी आ रहे हैं यह सुना था स्टॉफ के साथियों से। एमडी के आने के बाद भी सभीकुछ वैसा ही चल रहा था। समर अब अभ्यस्त हो गया था दर्शना के बिना रहने का सुबह 9 से 7 बजे तक।
उस दिन आठ बजे तक दर्शना नहीं आई। समर को बेचैनी हो रही थी। नर्स भी घड़ी देख रही थी तभी दर्शना आ गई। किसी बच्चे सी शिकायत थी समर की आँखों में।
उसने नर्स को भेजा और समर के पास बैठ गई। अॉफिस में आज एमडी ने स्टॉफ की मीटिंग ली थी। इसी लिए देर हो गई।
समर से झूठ बोलते हुए जुबान लड़खड़ा रही थी उसकी।
उसके बाद यह आम हो गया था। दर्शना के घर लौटने का वक्त बढ़ता जा रहा था। नर्स की भी पगार बढ़ा कर उसे राजी किया था दर्शना ने।
उसने कभी नहीं सोचा था, ज़िन्दगी इस तरह आयेगी उसके सामने। समर का काम और नाम काफी था प्रोडक्शन लाइन में। वो बड़ी बड़ी कम्पनियों के लिए एड फिल्म बनाता था। महाबलेश्वर से लौटते हुए कार के एक्सीडेंट में उसकी रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी।
सेक्शध हेड ने कहा था साहब याद कर रहे हैं। दर्शना चेम्बर में जाकर चौंक गई थी। एमडी की कुर्सी पर रोहन बैठा था।
उसको देखते ही दर्शना की समझ में आ गया था उसका हर दिन लेट होना। रोहन मुस्कुरा रहा था।
इस दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की को इस हाल में देखकर तक़लीफ हुई। सुना है समर अपाहिज हो गया है। एक एक पैसे से मोहताज हो तुम। ऐसे मरीजों के लिए अस्पताल हैं। बचे हुए दिन आसानी से काट लेगा वो। तुम क्यों सजा दे रही हो अपने आप को ? अगर होश ठिकाने आ गये हों और भूल चुकी हो उस बात को जो कही थी मुझ से, बता देना मुझे इत्मीनान से। इस एम्पॉयर की मलिका बनना तो ठुकरा दिया था तुमने। हाँ राजा के हरम में भी रानी बनकर रहोगी। घिनौनी हँसी हँसा था रोहन और दर्शना बेबसी से कदम उठाकर बाहर आ गयी थी।
सारे रास्ते कॉलेज की फेयरवैल पार्टी याद आती रही। रोहन तब भी दौलतमंद बाप का बिगड़ी औलाद थी, आज भी वही है। समर तब भी गरीब होकर स्वाभिमानी था और आज भी है। दर्शना के नाम पर चिट निकली थी गाने की। उसके यह कहने पर मैं गाती नहीं, रोहन ने कहा था, ड्यूएट गायेंगे हम…. समर ने उसे हौसला देकर तब वही गीत गाने का कहा जिसकी वजह से वो दोनों नज़दीक आये थे।
आज रोहन उससे उसी बात का बदला लेना चाह रहा था। घर आकर उसने समर को रोज से ज्यादा प्यार किया। उसकी पसंद का सूप बनाकर पिलाया। सुबह एक लिफाफा बस स्टॉप पर शर्मा जी को देकर आई जो उसके साथ ही काम करते हैं।
रोहन देख रहा था लिफाफे में रखे खत को। लिखा था दर्शना ने, रोहन तुम आज भी वही चाँद हो जिसे ग्रहण लगा है। समर आज भी मेरे गगन का वही चंद्रमा है जिससे चाँदनी है मेरी रातों में। अभी कृष्ण पक्ष है लेकिन मुझे भरोसा है। जल्दी ही शुक्ल पक्ष आयेगा और मेरी मावस बदल जायेगी पूनम में। मैं तुम्हारी कम्पनी की नौकरी छोड़ रही हूँ।
दो दिन बाद अॉफिस से आई थी चिट्ठी। रोहन ने लिखा था, मैं वापस लोट रहा हूँ अपनी दुनिया में जो यूके में है। तुम कल से अॉफिस आओ। समर को बीच कैण्डी अस्पताल के सर्जन देखेंगे। कोई पेमेंट नहीं करना है तुमको। मैं चाहता हूँ तुम्हारे गगन में फिर से जगमगाते चाँद को देखना।
#मुकेश दुबे
परिचय –
नाम  :. मुकेश दुबे
माता : श्रीमती सुशीला दुबे
पिता : श्री विजय किशोर दुबे
सीहोर(मध्यप्रदेश) 
आरंभिक से स्नातक शिक्षा सीहोर में। स्नातकोत्तर हेतु जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय जबलपुर में प्रवेश। वर्ष 1986 से 1995 तक बहु राष्ट्रीय कम्पनी में कृषि उत्पादों का विपणन व बाजार प्रबंधन।
1995 में स्कूल शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश में व्याख्याता। वर्ष 2012 में लेखन आरम्भ। 2014 में दो उपन्यासों का प्रकाशन। अभी तक 5 उपन्यास व 4 कथा संग्रह प्रकाशित। मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच भारत वर्ष द्वारा 2016 में लाल बहादुर शास्त्री साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।