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दिये तो बहुत थे पर,
जल कुछ और रहा था।
अंधरे में रोशनी,
वो ही कर रहा था।
अब कैसे पता करे हम?
जिक्र जब भी उनका, करते अपने दिल मे।
याद कुछ और ही,
दिला देता ये दिल ।
अब क्या कहोगे इसे,
तुम कुछ तो बता दो।
बात जो पुरानी है उसे,
नई एक बार कर दो।।
रास्ते बहुत लंबे है ।
पर मंजिले पास है।
चलने वालों को सिर्फ,
सही मंजिल का पता है।।
राही ढूंढ ही लेता है ।
एक दिन अपने आप को।
क्या था उसके दिल मे।
और क्या उसे चाह थी।।
जो मिला क्या,
वो काफी है।
या उसकी कुछ,
और ही तलाश है।
बिक जाते है,
लोगो दिलके आरमा ।
खरीदने वाले,
बहुत तैयार है।।
किस किस को,
दोष दे हम।
अब सभी तो,
अपने जो है ।
तभी तो सज जाते है,
लोगो के दिलो में सपने।।
छोड़ देते है,
वो भी साथ।
जो कभी अपने,
हुआ करते थे ।
ऐसी क्या गलती की,
जो चले गए छोड़ मझधार में,
छोड़ गए मझधार में…।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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