जिंदगी की कल्पना करूं या,मौत लिखूं..
मैं लिखूं तो आखिर किस पर लिखूं ।
फूलों की क्यारियों में है कांटों की चुभन भी,
महकते कश्मीर में है बारूद की धमक भी..
इंसान की मासूमियत कहूं या जुल्म लिखू मैं,
लिखूं तो आखिर किस पर लिखू मैं ।
एकता में घुल चुकी दंगों की गूंज भी,
धर्म के हुजूम में है फिरकापरस्त भी..
मस्जिद में अजान कहूं या गीता लिखूं मैं,
लिखूं तो आखिर किस पर लिखूं मैं ।
आजादी में है पल रहे कई गुलाम भी,
रोटी के लिए लड़ रहे यहां यार भी..
महफिलों की शाम लिखूं या भूख लिखूं..
मैं लिखूं तो आखिर किस पर लिखूं….।
#रविंद्र नारोलिया
परिचय : इंदौर(मध्यप्रदेश) के परदेशीपुरा क्षेत्र में रविंद्र नारोलिया रहते हैं। आपका व्यवसाय ग्राफिक्स का है और दैनिक अखबार में भी ग्राफिक्स डिज़ाइनर के रुप में ही कार्यरत हैं। 1971 में जन्मे रविंद्र जी कॊ लेखन के गुण विरासत में मिले हैं,क्योंकि पिता (स्व.)पन्नालाल नारोलिया प्रसिद्ध कथाकार रहे हैं। आप रिश्तों और मौजूदा हालातों पर अच्छी कलम चलाते हैं।
शानदार
बहुत खुब रविन्द्र जी
जमीं पर लिख, आसमां पर लिख
अपनों पर लिख, परायो पर लिख
क्या गीता, क्या कुरान
तू हर इंसान पर लिख,
लिखना तेरी फितरत नहीं
इसे अपना धर्म समझ,
दूसरों पर तो सब लिखते हैं
तू अपने हर अंदाज पर लिख।