काहे का रिश्ता और काहे का दखल..आज मनुष्य इतना स्वार्थी और संवेदनहीन हो गया है कि,रिश्तों की अहमियत नहीं समझ सकता। आज कोई किसी के काम में अनावश्यक तो क्या आवश्यक दखल भी नहीं देता। कहीं बात का बतंगड़,तिल का ताड़ न बन जाए। कोई किसी पर भरोसा नहीं करता,और […]
मातृभाषा
मातृभाषा
परिदृश्य चाहे वैश्विक हो,राष्ट्रीय हो,सामाजिक हो या पारिवारिक हो-कुछ भी करने से पहले यह प्रश्न हमेशा सालता है कि-`लोग क्या कहेंगे ?` उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी और इसका हमारे मूल्यों,सिद्धान्तों और जीवन पर क्या असर पड़ेगा! चिन्तन का पहलू यह होना चाहिए-हमको लोगों के कहने की कितनी परवाह करना चाहिए,क्योंकि […]