रात के तीसरे पहर में स्वर्णिम अमृतबेला में नींद के गहरे आगोश में जब समाया रहता हूं मैं स्वप्नों का अनूठा संसार जब रहता मेरे इर्दगिर्द सतयुग की परिकल्पना मुझे ले जाती उस पार जहां रहते है परमात्मा हां, वही जो आनन्ददाता है हां, वही जो सुखों के सागर है […]
काव्यभाषा
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