इश्क़ को कुछ दिनों में, बांधना गुनाह है। इश्क व्यापार नहीं, बस दिली चाह है। पश्चिमी सभ्यता में, दिन हैं बँधे हुए। रिश्ते उलझनों में, दिल है खुले हुए। रिश्तों की मर्यादा, यहाँ खुद से है वादा। यहाँ तो प्यार भी, मीरा-सा बेपरवाह है। #शशांक दुबे लेखक […]
काव्यभाषा
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