एक पढ़ा-लिखा
बेरोजगार युवक,
नौकरी ढूंढते-ढूंढते
हो गया था परेशान..
जाति में ब़ाहम्ण होने
के अभिशाप से था हैरान।
नेताओं के निजी स्वार्थ
ने जनरल के कोटे को,
इतना कम कर दिया
कि नौकरी मिलना
मुश्किल हो गया था,
ब़्राह्मण होने का
एक फायदा जरुर हुआ
जन्मजात ग्यानी..
बुद्धि में बहुत ही तेज था।
पैसों की कमी औऱ
बेरोजगारी ने उसे दिनों-दिन
कर दिया था हैरान परेशान।
अचानक मन में एक
युक्ति समझ मैं आई,
रोज सुबह से शमशान
घाट में जाकर बैठने लगा,
और शहर से आने वाली
शवयात्रा मिट्टी मैनो से
ग्यारह के बीच शामिल होने लगा।
आजकल शवयात्रा में
शामिल होने वालों को
एक किताब दी जाती है,
अपना नाम-पता
लिखने की कही जाती है।
उस युवक ने भी किताब
में अपना नाम-पता
शमशान घाट के पहले
झोपड़ी लिखा दिया।
अपनी झोपड़ी में
‘राम नाम सत्य है’
का बोर्ड लगवा दिया।
इसमें तेरहवीं में खाने के साथ
कम से कम 101 रुपए
दक्षिणा देना भी लिखवा दिया।
अचानक दस बारह दिन बाद,
जजमान झोपड़ी में आए,
तेरहवीं का कार्ड देकर
आने का आग्रह किया।
बेरोजगार युवक जजमान के
घर तेरहवीं खाने गया,
खाना खाने के बाद
एक सौ एक रुपया नगद,
गिलास-चटाई मिली भेंट..
सम्मान सहित हुई विदाई।
इस तरह अब रोज,
एक-दो तेरहवीं में रोज
शामिल होने लगा,
एक दिन जजमानों से,
विनम्रता पूर्वक आग्रह कर
अपना मत बताया।
मैं तो बेरोजगार हूँ,
जाति का ब़हामण हूँ..
दझिणा में मुझे ये
गिलास तौलिया मत दीजिए।
दान की यह सामग्री,
झोपड़ी में बहुत हो गई है,
इच्छानुसार नगद दे दीजिए ।
जजमानों को बात पसंद आई,
दूसरे दिन युवक
जजमान घर तेरहवीं में गया,
पेट भर खाने के बाद,
तीन सौ एक रुपया पाकर,
मन ही मन हर्षाया।
इस तरह ब्राह्मण का,
रोज़ यही क्रम चलने लगा,
हर दिन एक-दो ,
शवयात्रा में शामिल होने लगा..
दोपहर में नहाने के बाद ,
ब्राह्मण भोज में रोज़ ,
शामिल होने लगा।
इस तरह धर्म के साथ,
कर्म भी करने लगा..
बस इसी तरह अपने
दो-चार ब्राह्मण दोस्तों
को भी शामिल कर लिया..
दोस्तों को बैठे-बिठाए ,
काम मिल गया।
पेटभर खाना, खर्च
को पैसा भी मिलने लगा..
दक्षिणा की रकम में परिवार
का खर्च चलने लगा।
अपनी ब्राह्मण जाति
से समाज में सम्मान भी
मिलने लगा,
इस तरह मुक्तिधाम में
बेरोजगारी से मुक्ति पा गया।
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।