चल दोस्त नदी के किनारे चलें, भागकर घर से, छुपते-छुपाते,बरगद तले चलें.. चल दोस्त नदी के किनारे चलें। वो मुंडेर,जहाँ बीता करते थे सारे दिन अपने, बैठ के बुना करते थे बड़े बनने के सपने.. उस सपने की सच्चाई से दूर लौट, अपने बचपन में चलें.. चल दोस्त नदी के […]
काव्यभाषा
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