शब-ए-इंतज़ार में सितारे टिमटिमाते रहे, चाँद बे-ख़ौफ़ खिलखिलाता रहा। रो पड़ी शबनम आकर जमीं के आगोश में, सहर भी न थी अपने होश में। जो पूछा क्या हुआ जबाब एक आया, तपता है सूरज पिघलते हैं हम। हर बार इल्जाम क्यों हम पर ही आया, ज़माने ने शबनम के पैरों […]
काव्यभाषा
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