कागजों के ढेर लग गए हैं, स्याह हरफ़ों से रंगे कागज के। कागज भी हो गए अब काले, स्त्री पीड़ा की दास्तान कहते। चहुंओर घूम रहे हवस के भेड़िए, नारी की आबरु को लूटने। क्या अर्थ स्त्री सशक्तिकरण का, स्वतंत्रता दफन है कानूनी पन्नों में। पीड़िता मजबूर झूठे गवाहदारों से, […]