एक हवा-सी चली है एक विशेष वर्ग को भड़काकर उनके हिमायती नेता बनने के चक्कर में ब्राम्हणों को विदेशी आक्रांता बताते हुए बुरा बोलने की। ब्राम्हणों को विदेशी बताने वाले स्वघोषित मूल निवासियों की मानसिक दशा देखकर यही प्रतीत होता है कि वे अपने मूल को भूल चुके हैं। स्पष्ट […]
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कमोबेश यह स्थिति भारत की सभी भाषाओं की है। यदि हम अपनी भाषाएं ही न बचा पाए तो,भारतीय धर्म- संस्कृति,ज्ञान-विज्ञान,बौद्धिक-संपदा व आध्यात्म ही नहीं,भारतीयता को बचाना भी असंभव है। जब हम भारत की भाषाओं और भारतीयता से दूर होंगे तो,आने वाली पीढ़ियों में भारत के प्रति प्रेम यानी राष्ट्रप्रेम कैसे बचेगा? […]