कमोबेश यह स्थिति भारत की सभी भाषाओं की है। यदि हम अपनी भाषाएं ही न बचा पाए तो,भारतीय धर्म- संस्कृति,ज्ञान-विज्ञान,बौद्धिक-संपदा व आध्यात्म ही नहीं,भारतीयता को बचाना भी असंभव है। जब हम भारत की भाषाओं और भारतीयता से दूर होंगे तो,आने वाली पीढ़ियों में भारत के प्रति प्रेम यानी राष्ट्रप्रेम कैसे बचेगा?
इसीलिए,पाश्चात्य विद्वान थॉमस डेविड ने कहा था-‘राष्ट्र की रक्षा से भी अधिक जरूरी है,राष्ट्रभाषा की रक्षा।` इसका अभिप्राय यह है कि,राष्ट्र की भाषाएं ही किसी देश की संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक लेकर जाती हैं,और संस्कृति ही किसी राष्ट्र को बांधने का मूल तत्व है। जब हमारी भाषाएं ही न बचेंगी तो, संस्कृति कैसे बच सकती है? और जब राष्ट्र को बांधने वाला मूल तत्व ही न होगा तो राष्ट्र कब तक और किस हद तक एक तथा सुरक्षित रह सकेगा? जब राष्ट्र ही न होगा तो,हम रक्षा किसकी करेंगे?
जो कई देशों और कुछ पुराने गुलाम देशों को छोड़कर विश्व के सभी छोटे-बड़े देश अपनी भाषा में पढ़ते हैं,काम करते हैं और आगे बढ़ते हैं।
यह भी ध्यान देने की बात है कि,दुनिया के बीस सबसे गरीब व पिछड़े देश वे हैं,जो पराई भाषा(उनकी भाषा जिनके वे गुलाम थे) में पढ़ते व काम करते हैं।और दुनिया के बीस सबसे अमीर व सम्पन्न देश वे हैं,जो अपने देश की भाषा में पढ़ते व काम करते हैं। (आभार-वैश्विक हिन्दी सम्मेलन)
#डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’