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काश तू किसी इंसान के घर पैदा होता
ना तू कभी हिन्दू होता ,ना मुसलमाँ होता ।।
तू क्यों खुशनुमा विविधता को तोड़ रहा
स्वार्थ को क्यों देश भक्ति से जोड़ रहा।
यहां पल पल लोग कण कण में टूट रहे हैं
लोग धर्म के आड़ में क्षण क्षण में फुट रहे हैं।
क्यों इन छद्मियों का अनुकरण कर रहा है
धर्म रूढ़ियों से मानवता का चीर हरण कर रहा है ।
आब ओ हवा में अब यूँ काला ज़हर घुल गया
मजहब की नुमाईश का ठेका, चंद छद्मियों को मिल गया ।
दुश्मनो से टकराने हमें ,हमेशां से ख़ुमार हैं
क्यों सामना अपनों से करने अब हम तैयार हैं ।
सभी के खून से सिपाहियों ने सींचा है हिंदुस्तान को
किस अकेले ने लुटाया है कब ,आज़ादी में अपनी जान को ।
गर्म हो या नर्म , सभी आक्रोश के तरीके थे
गुस्सा हो खामोशी ,हुकूमत की खिलाफत के तरीके थे ।
अब क्यों बाँट रहे मजहबी तरीकों में
पूजा करने या इबादत के सलीको में ।
जानता हूँ कोई नहीं सीखेगा देश प्रेम ,की चंद पंक्तियों से
आज़ादी में मर मिटे भारत के सच्चे जंगियों से
जो गीता बाइबिल कुरान के असली मकसद से नहीं सीखे ।
वो देशप्रेम की समर्पित भावनाओं से क्या सीखें।
बस अंत में एक छोटी सी बात जानी है
मानवता ही मरने के बाद,साथ जानी है।
#नीलेश झा ‘नील’
परिचय:
नाम: नीलेश झा ‘नील’
पिता का नाम :श्री बृजेश झा
माता की नाम:श्रीमती शोभना झा
जन्मतिथि : 27 सितंबर 1986
शिक्षा : LLB , MBA, MSC.cs
शिक्षणस्थान:रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर , माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल मप्र
संप्रति: अधिवक्ता मप्र उच्च न्यायालय जबलपुर , जिला एवं सत्र न्यायालय मंडला
प्रकाशन:देश की प्रतिष्ठित विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में नियमित रचनायें एवं समीक्षाएं प्रकाशित!
विधा :- मुक्तक , बाल साहित्य, कविताये, लघुकथा , कहानियां , व्यंग्य , समीक्षाएं, समसामयिक विषयों पर लेख ।।
संपर्क सूत्र: देवदरा मंडला (मध्यप्रदेश)
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