नानी

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minakshi vashishth
नानी————!
तुम मेरी कुम्हार
और मैं
तुम्हारे चाक पर घूमती
मिट्टी थी ।
मैं घूमती रही
तुम्हारे चाक पर
तुम्हारी इच्छानुसार,,
निर्विरोध ,लगातार ।।
मैं तुम्हारी कच्ची मिट्टी
जैसे चाहा ठोका,थपका ।।
कभी बिगाड़ा,
कभी बनाया।।
मुझे पकाया,रंग चढ़ाया,,
और …….वही बनाया
जो तुम बनाना चाहती थी ,,
मैं बनना नही ….!!
नानी…………..!
तुम मेरी सलाईयाँ
मैं उनमें उलझा धागा थी ।
सुलझाया,बनाया,उधेडा और फिर बुना ।
इस उधेड़-बुन से ही…….
धागों को मिली सुंदर बुनावट
और नया  आकार ।
अब ये बुने हुऐ धागे
हर धुलाई से हैं और निखर जाते ।।
हवाओं के थपेड़े इन्हें उलझा नही पाते ।।
नानी…………..
इन धागों का आकार
अभी वही है जो तुमने बनाया था!!
हर धुलाई से ये और सम्भल-सुलझ जाते हैं।।
नानी………………….!!
तुम मेरी माली
मैं तुम्हारी बगिया का
नन्हा पौधा थी ,,
तुमने सींचा ,पोषा
काटा-छाँटा
निराया-संवारा
और छंटनी में
छाँट डालीं
नन्हे सपनों की
कोमल कलियाँ !!
तुम चाहती थी फूल खिले
   और खुशबू न बिखरे ,,
तुमने बाकी पौधों के साथ
बना दिया था मेरा भी घेरा
थोडा और मजबूत,,
थोड़ा और ऊंचा,,
शायद आप नही जानती थीं
“फूलों के पिजड़े”
कितने भी अटूट बना लो
पर………………………
खुशबुएँ दहलीज लाँघ जाती हैं।।
नानी…………….!
तुम्हारे
सिद्धांतों के जंगल में
मेरा बचपन कहीं खो गया
और मैं बड़ी हो गयी
बिल्कुल वैसे ही…….
जैसे तुमने सोचा था ।।
#मीनाक्षी वशिष्ठ
नाम->मीनाक्षी वशिष्ठ
जन्म स्थान ->भरतपुर (राजस्थान )
वर्तमान निवासी टूंडला (फिरोजाबाद)
शिक्षा->बी.ए,एम.ए(अर्थशास्त्र) बी.एड
विधा-गद्य ,गीत ,प्रयोगवादी कविता आदि ।

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