घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिग

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vaikunth
महाराष्ट्र का इक जनपद,
औरंगाबाद प्रसिद्ध हुआ।
वहाँ दौलताबाद देवगिरि,
का द्विज शिव का सिद्ध हुआ।
नाम सुकर्मा औ सुदेश के,
थी कोई  संतान   नहीं।
शिव भक्ति में लीन सदा थे,
पर किन्चित अभिमान नहीं॥
वह सुदेश के ही कहने पर,
बहन उसी की घुश्मा थी।
ब्याह कर लिया सन्नारी से,
शिव भक्ति में  सुषमा थी॥
भोले भंडारी की निश दिन,
पूजा   घुश्मा   करती   थी।
बड़े भाव औ मनोयोग   से,
ध्यान  न दूजा  धरती  थी॥
अवढर दानी  की  सेवा से,
घुश्मा  के  सृत  एक हुआ।
पर उसकी मौसी सुदेश को,
चिन्ता,जलन अनेक हुआ॥
नहीं सह सकी बहिन पुत्र को,
सोता   पाकर मार    दिया।
निकट एक तालाब देखकर,
उसमें   उसने   डार  दिया॥
प्रातः पुत्र न  देख  सुकर्मा,
करने करुण  विलाप लगा।
ध्यानमग्न शिव में घुश्मा थी,
तनिक न उसका ध्यान डिगा॥
शिवशंकर प्रसन्न घुश्मा पर,
जीवित पुत्र  निकल आया।
देवगिरी  का पावन  विग्रह,
घुश्मेश्वर   ही    कहलाया॥

                                                                                       #वैकुण्ठ नाथ गुप्त ‘अरविन्द’

परिचय : वैकुण्ठ नाथ गुप्त ‘अरविन्द’ मौलिक रूप से गीत,कहानी,छन्द की सभी विधाओं में कविताएँ,लेख माँ वीणा पाणी की कृपा से लिखते हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में इनका प्रकाशन होता रहता है। कुछ समाचार पत्र में आपके व्यंग्य का स्थाई स्तम्भ भी प्रकाशित हो रहा है। आप फैज़ाबाद जिले के तेलियागढ़(उ.प्र.) में रहते हैं।

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