विशुद्ध गुरू माँ की आरती

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rikhabchand
जगमग दीपक हाथों में लाएँ विशुद्धमती माता की आरती गाएँ।
जगमग दीपक हाथों में लाएँ विशुद्धमती माँ की आरती गाएँ।।
पिता गुलजारी जी ने श्री धन पाया।
श्री देवी माता ने लक्ष्मी रूप जाया।।
लश्कर नगर में जन्म आपने पाया।
अनुपम सुंदर है गुरु माँ की काया।।
जगमग दीपक——————
छोटी-सी आयु में बनकर साधिका।
जिनशासन संयम की दिव्य चंद्रिका।।
दीक्षा गुरु श्री निर्मल सागर गुरूवर।
पाई थी शिक्षा निर्मल शिष्या बनकर।।
जगमग दीपक —————
धर्म नगरी जयपुर में गुरू माँ पधारे।
शुभ दर्शन से जागे पुण्य भाग हमारे।।
जगमग स्वर्ण दीपक ‘रिखब’ जलाएँ।
माँ विशुद्ध भक्त परिवार आरती गाएँ।।
जगमग दीपक——————-
जगमग दीपक हाथों में लाएँ। विशुद्धमती माता की आरती गाएँ।
जगमग दीपक हाथों में लाएँ। विशुद्धमती माता की आरती गाएँ।।

         #रिखबचन्द राँका

परिचय: रिखबचन्द राँका का निवास जयपुर में हरी नगर स्थित न्यू सांगानेर मार्ग पर हैl आप लेखन में कल्पेश` उपनाम लगाते हैंl आपकी जन्मतिथि-१९ सितम्बर १९६९ तथा जन्म स्थान-अजमेर(राजस्थान) हैl एम.ए.(संस्कृत) और बी.एड.(हिन्दी,संस्कृत) तक शिक्षित श्री रांका पेशे से निजी स्कूल (जयपुर) में अध्यापक हैंl आपकी कुछ कविताओं का प्रकाशन हुआ हैl धार्मिक गीत व स्काउट गाइड गीत लेखन भी करते हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-रुचि और हिन्दी को बढ़ावा देना हैl  

Arpan Jain

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