तुम्हारी यादें

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mitra

कभी तरन्नुम-सी,
कभी तब्बसुम-सी..
कभी हल्की-सी,
कभी बहकी-सी
तुम्हारी यादें।

आज बहुत थामकर बैठी
हूँ इनको,पर

कभी बज उठती हैं,
कभी चमक उठती हैं..
कभी सिहर जाती हैं,
कभी बिखर जाती हैं।

कभी धूप-सी,
कभी घटा-सी..
कभी पुष्प-सी,
कभी लता-सी..
तुम्हारी यादें।

आज बहुत बांधकर बैठी
हूँ इनको, पर…

कभी खिल उठती हैं,
कभी बरस जाती हैं..
कभी महक उठती हैं,
कभी लिपट जाती हैं।

                                                                            #लिली मित्रा

परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं। 

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