Read Time1 Minute, 27 Second
उम्मीद है कि
तुम लौट आओगे एक दिन
खीच लाएगी तुम्हे
तुम्हारी बेचैनियां एक दिन
जाने क्यों?
उम्मीद है कि
हम फिर से मिलेंगे कहि
संगम पर नदी के किनारे ज्यूँ
जाने क्यो?
उम्मीद है कि
रोशनी छुपी होगी मुठ्ठी में
खुलते ही कलाई थाम लेंगे हम
जाने क्यों?
उम्मीद है कि
बह रहा था इश्क जो
धड़कनो में ,याद दिलाएगा वफ़ा
जाने क्यों?
उम्मीद है कि
फिर से हम साथ होंगे क्योंकि
रूह से जिया था प्रीत को हमने
जाने क्यों?
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
Post Views:
558
Fri May 4 , 2018
तपती धरती की प्यास बुझाकर, सूखी नदियों में आस जगाकर, बादल करते हैं, एक नई शुरुआत। नन्हीं चिड़िया तिनके बुनकर, छोटी चींटी दाने चुनकर, करतीं हैं एक नई शुरुआत। वसंत ऋतु के आने से प्रकृति के शृंगार की, होती है एक नई शुरुआत। नई सभ्यता नई संस्कृति से, उम्मीदों की […]