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ऐ वक्त तुझसे थोड़ा वक्त चाहता हूँ।
खुद गुमशुदा हूँ अपनी शिनाख्त चाहता हूँ॥
दिल की वजह से मैंने झेले हैं रंज कितने।
दिल को करना अब मैं सख्त चाहता हूँ॥
बस जिन्दगी तुझको जीना चाहता हूँ।
न ताज चाहता हूँ न तख्त चाहता हूँ॥
जिन्दगी में जीत इतनी भी जरूरी नहीं।
मिले साथ अपनों का तो शिकस्त चाहता हूं॥
कुछ खास नहीं बस थोड़ी-सी हसरतें हैं।
‘अमित’ उन्हीं का करना बन्दोबस्त चाहता हूं॥
#अमित शुक्ला
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