वतन के रखवालों का बढ़े सम्मान

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पिछले दिनों देश के एक प्रमुख समाचार चेनल पर एक कार्यक्रम में सेना के एक प्रमुख रेजीमेंटल ट्रेनिंग सेन्टर के प्रशिक्षु सैनिकों के मोबाइल्स को उन्हीं जवानों की आँखों के सामने पत्थरों से तोड़ते हुए दिखाया गया है। एक लोकतांत्रिक देश में और संचार क्रांति के युग में प्रशिक्षणरत रिक्रूटों के साथ इस प्रकार का बेहूदा व्यवहार हिटलरशाही का नमूना ही कहा जाएगा ? इससे पहले भी सशस्त्र सेनाओं और अर्धसैन्य बलों के जवानों के संदेशों वाले वीडियो सोशल मीडिया में देखने को मिलते रहे हैं जिनमें जवान अपने उच्चाधिकारियों की प्रताड़ना, तानाशाहीपूर्ण रवैए,सहायक के नाम पर नौकरों की तरह घरेलू काम करवाने,समय पर छुट्टी न देने और घटिया भोजन की शिकायतें करते दिख जाएंगे। ट्रेंड सोल्जर्स के साथ नौकर की तरह दोयम दर्जे का व्यवहार करना किसी भी दशा में स्वीकार्य नहीं हो सकता है ? देश के नागरिकों को जो सशस्त्र सेनाओं अथवा अर्धसैनिक बलों का हिस्सा नहीं होते हैं,उन्हें सेना के अंदरुनी मामलों एवं हालात की ज्यादा जानकारी नहीं होती है,लेकिन इन्हीं मुश्किलों के चलते अक्सर कई भूतपूर्व सैनिक अपनी संतानों को सेना में भर्ती करने की सख्त खिलाफत करते हुए भी मिल जाते हैं।

फिर भी १३० करोड़ की आबादी वाले देश में आज़ भी सुरक्षित,लेकिन जोखिम से भरपूर रोजगार पाने का एक बड़ा जरिया फौज ही है। अकेले भारतीय सशस्त्र सेनाओं द्वारा प्रतिवर्ष लगभग ६० हजार नौजवानों को अपने यहां भर्ती किया जाता है। सेना में पिछले दो-तीन दशकों से `मेल रिक्रूटेबल पॉपुलेशन` सूत्र के आधार पर राज्यवार युवकों की भर्ती किए जाने के कारण हिमाचल प्रदेश जैसे महज ३५ लाख के आसपास पुरुष आबादी वाले राज्य के सेना में भर्ती होने के इच्छुक काबिल युवाओं को कोटा कम होने के कारण मन मसोसकर रहना पड़ रहा है। ३१ दिसम्बर २०१६ की स्थिति के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगारों का आँकड़ा ८.२४ लाख 478 था। इसके साथ ही यदि भूतपूर्व सैनिकों की संख्या देखें तो वर्तमान समय में इनकी तादात १.३० लाख २२५ है, जिनमें से ५४.४०३ हजार पूर्व सैनिक अकेले जिला कांगड़ा से सम्बन्ध रखते हैं। इस आँकड़े से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि,स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही सेना के माध्यम से राष्ट्र सेवा करना वीर हिमाचलियों की प्राथमिकता में रहता आया है। इस संदर्भ में पूर्व सैनिकों की चिरवांछित `वन रेंक वन पेंशन` की मांग को पूरा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से `हिमाचल रेजीमेंट` की स्थापना की मांग जायज ही है। यदि केन्द्र सरकार हिमाचल रेजीमेंट की स्थापना को अपनी मंज़ूरी देती है और इसमें अधिकतम सैनिकों की भर्ती हिमाचल और जम्मू कश्मीर के पहाड़ी भाषी इलाकों के नौजवानों से की जाती है,तो निश्चित रूप से गैर औद्योगिक इन राज्यों के युवाओं के लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे। Iवैसे भी कुल २२ में ४ परमवीर चक्र सहित अनेक लड़ाइयों एवं आतंकवाद विरोधी अभियानों में १२०० से ज्यादा वीर सैनिकों द्वारा अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान देकर बड़ी सँख्या में बहादुरी के तमगे हासिल करने वाले हिमाचली परिवारों की हिमाचली रेजीमेंट की मांग समय रहते पूरी हो ही जानी चाहिए। हिमाचल के वीर सैनिकों से जुड़ी कुछ अन्य मांगों में सैन्य सीएसडी डिपो की हिमाचल में स्थापना,डोगरा रेजीमेंटल ट्रैनिंग सेन्टर को फैजाबाद से जिला कांगड़ा में स्थानांतरित करना,एयरफोर्स स्टेशन की स्थापना और सैनिकों की भर्ती में हिमाचली युवाओं का कोटा बढ़ाने के साथ-साथ किसी अर्धसैनिक बल के ट्रेनिंग सेन्टर की हिमाचल में स्थापना की मांग प्रमुखता से शामिल है।

पिछले लगभग ४० वर्ष से पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के रूप में निरंतर पेश की जा रही चुनौती और उसमें उलझे हुए हमारे जवानों एवं अधिकारियों के ऊँचे मनोबल को बनाए रखने के दृष्टिगत भी और डोकलाम विवाद तथा बार-बार भारतीय सीमा के उल्लंघन की काररवाई करते चीनी सैनिकों की करतूतों के अलावा अमेरिका और उत्तरी कोरिया के बीच बढ़ती तना-तनी कहीं तीसरे विश्व युध्द का कारण न बन जाए, के मद्देनज़र भी यह ज़रूरी हो जाता है कि,भारत सरकार और रक्षा मंत्रालय के उच्चाधिकारी उन सभी उपायों की पुख्ता व्यवस्था करें,जिनसे न केवल हमारे जवानों और अधिकारियों के आपसी रिश्ते बेहतर हों,बल्कि उनकी अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों और आयुध जरूरतों को भी प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाना चाहिए। आज़ हमारा देश मिसाइल तकनीक के मामले में आत्मनिर्भर हो चुका है,लेकिन बीते 20 वर्षों में नवीनतम तोपों,टैंकों, लड़ाकू विमानों और नौसैनिक जहाजों और पनडुब्बियों की खरीद के मामले में कोई निर्णय न हो पाने के कारण हमारी रक्षा तैयारियों को आघात पहुंचा है। हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा फ्रांस के साथ ३६ राफेल लड़ाकू युद्धक विमानों के सौदे का राजनीतिक विरोध हमारी रक्षा तैयारियों को पीछे धकेलने जैसा कदम ही माना जाना चाहिए ?

जम्मू कश्मीर में पिछले ३० वर्षों से जारी पाक प्रायोजित आतंकवाद से हमारी सेनाएं और अर्धसैनिक बल लगातार मुकाबला कर रहें हैं। अकेले साल नवम्बर २०१७ की अवधि तक २०८ आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है,लेकिन २०१३ से आज़ तक १३० जवान कई मुठभेड़ों में शहीद भी हुए हैं। इनके परिवारों की देखभाल भी ज़रूरी है। इतना ही नहीं,हमारे अर्धसैनिक बलों के जवानों की कठिन हालात में नौकरी के दृष्टिगत उनको भी सेवानिवृति के बाद सेना के समान पेंशन,चिकित्सा और अन्य सुविधाएं मिलनी चाहिए और उन्हें अंशदायी पेंशन योजना के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही सैन्य जीवन की दुश्वारियों और कठिनता के मद्देनजर अधिकारियों और जवानों के बीच बढ़ते अविश्वास और उनके बीच पनप रहे रोष को भी समय रहते सम्भालने की जरुरत है। सरकार को यह सुनिश्चित बनाना होगा कि,आंतकवाद विरोधी अभियानों में लगे जवानों को बेहतरीन सुविधाएं मिलें,उन्हें समय पर छुट्टी मिले,अच्छा खाना,वर्दी-जूते,और बेहतर माहौल मिले,ताकि उनका मनोबल ऊँचा बना रहे। सैनिकों के व्यक्तिगत हथियारों को उन्नत रायफ़लों से बदलने की त्वरित आवश्यकता है। हमें ध्यान रखना होगा कि,चाहे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई हो अथवा कोई सैन्य अभियान,उसे लड़ना बुलंद हौंसलों वाले जवानों और कुशल अधिकारियों ने ही है। अतएव,सैनिकों और अधिकारियों के बीच परस्पर सामंजस्य,सौहार्द एवं बेहतर तालमेल होना अति आवश्यक है।

आखिर में अर्ज है-

`देश,विश्व में आलोकित हो,

गौरव इसका फ़िर वापिस आए।

करें कर्म कुछ ऐसा हम,

भारत स्वर्णिम आभा से फ़िर रंग जाए।`

#अनुज कुमार आचार्य 
परिचय : अनुज कुमार आचार्य की जन्मतिथि २५ जुलाई १९६४ और जन्मस्थान-बैजनाथ है। वर्तमान में आप हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की तहसील बैजनाथ के गाँव-नागण में रहते हैं। शहर-पपरोला से ताल्लुक रखने वाले श्री आचार्य की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी )बी.एड. और पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा है। बतौर कार्यक्षेत्र आप भूतपूर्व सैनिक हैं और स्वतंत्र लेखन-अध्यापन करते हैं। सामाजिक क्षेत्र की बात की जाए तो स्वच्छता-जागरुकता अभियान और युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं। कई समाचार पत्रों में सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर नियमित लेखन में सक्रिय हैं। सम्मान के रूप में आपको थल सेनाध्यक्ष से प्रशंसा-पत्र और श्रेष्ठ लेखन हेतु प्रतिष्ठित हिमाचल केसरी अवार्ड हासिल हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-सामाजिक विकृतियों,भ्रष्टाचार तथा असमानता के विरुध्द जागरूकता पैदा करना है। 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।