
लूटाकर सब कुछ अपना
तुम्हें खुश नहीं कर पाये।
जमाने की खाकर ठोकर
संभल तुम नहीं पाये।
अपने और परायो को
नहीं पहचान तुम पाये।
क्योंकि तुम खुद किसी के
दिलमें जगह नहीं बना पाये। ।
कसम खा खा कर तुमने
न जाने कितनो को लूटा।
न जाने कितनो को तुमने
अपनी अदाओं से लूटा।
तभी तो लोगों ने तुमसे
अपना मुँह मोड़ लिया।
और जमाने में तुम्हें
अकेला छोड़ दिया।।
मोहब्बत के नाम पर तुमने
न जाने कितने दिल तोड़े।
न जाने कितनो को तुमने
मोहब्बत करना भूला दिया।
न जाने कितनो का तुमने
घर संसार को मिटा दिया।
जो अब न जीने में है
और न ही मरने में है।।
अपने हुस्न के बल पर
कुछ दिन ही जी पाओगें।
फिर डालती उम्र में तुम
किस के पास जाओगें।
कही तुमको भी कोई
तुम्हारे जैसा मिल जाये।
और तुमको भी तुम्हारी
करनी का फल मिल जाये।।
करो ना तुम बदनाम
मोहब्बत जैसे शब्द को।
मोहब्बत करने वाले
लगा देते इसमें पूरा जीवन।
तभी अपनी मोहब्बत को
परवान चढ़ा पाते है।
और अपनी मोहब्बत को
अमर दुनियां में कर जाते है।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)