जुगनूओं की रजाई

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naval
घर खुली जगह
छत, पूरा आसमान,
सोने को हरी-भरी दूब
ओढ़ने को रजाई
चमकते जुगनूओं की।
फटी रजाई में कहीं-कहीं
झांकते स्वच्छ
दोपहरी सूखे मेघ,
साथी की न कोई चिन्ता
पवन हिलाए-डुलाए-नचाए,
और उसकी लय पर थिरकता
एक गरीब अधम मानव का
मैला-कुचैला नंगा शरीर,
छप्पर की छत से
झांकते आसमान के तारे,
बल्लरियों से घिरे
वीरां में दूर-दूर तक
बस सुनसान जंगल
और एक मीठी-सी आहट,
दृगों से बहते पानी में
बह निकली मिन्नतें सारी,
और उमड़ते सैलाब में
जो पूंजी,शेष जीवन था
वो भी मानो बह गया,
वो अब लौट नहीं सकता
पानी तो आखिर पानी है।
पानी कैसे रूक सकता है ?
कच्चा रास्ता हैं आंखें,
पत्थरों तक को नहीं  छोड़ता॥
                                                        #नवल पाल  प्रभाकर ‘दिनकर’
परिचय : नवल पाल प्रभाकर की शिक्षा  एम.ए.,बी.एड.है। आप हिन्दी सहितअंग्रेजी,उर्दू भाषा का ज्ञान रखते हैं। हरियाणा राज्य के जिला झज्जर में आप बसे हुए हैं। श्री पाल की प्रकाशित पुस्तकों में मुख्य रुप से यादें (काव्य  संग्रह),उजला सवेरा (काव्य संग्रह),नारी की व्यथा (काव्य संग्रह),कुमुदिनी और वतन की ओर वापसी (दोनों कहानी संग्रह)आदि है। साथ ही ऑनलाईन पुस्तकें (हिन्दी का छायावादी युगीन काव्य,गौतम की कथा आदि)भी प्रक्रिया में हैं। कई भारतीय समाचार पत्रों के साथ ही विदेशी पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। सम्मान व पुरस्कार के रुप में प्रज्ञा साहित्य मंच( रोहतक),हिन्दी अकादमी(दिल्ली) तथा  अन्य मंचों द्वारा भी आप सम्मानित हुए हैं। 

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