रब का बन्दा…

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snehil

रब का बन्दा
रोए काहे, तू है रब का बन्दा..
काहे बाँधे वो धागे,जो बन जाए फन्दा।

कोशिश तो कर खुलेगा,
इन हवाओं से लिपटकर तू भी बहेगा
महसूस होगा तू भी है ज़िन्दा,
काहे रोए तू है रब का बन्दा।

कहता सौ वारी सौ बातें ये जहाँ,
इनके कहे तेरा कुछ न छूटता..
पर जो तू रोए इनके कहने पर
तेरा खुद से नाता टूटता..
काहे रोए तू है रब का बन्दा।जल जाए कागज़,कहानी न जल पाए,
लिख ऐसी कहानी,आसमां कम पड़ जाए..
महसूस होगा तू भी है जिन्दा,
रोए काहे, तू है रब का बन्दा।

परिचय : रायपुर(छत्तीसगढ़) निवासी पी.व्ही. स्नेहिल ने भिलाई से शिक्षा ली है,और गुलज़ार की कविताओं-गीतों से खासे प्रेरित हैं। उन्हीं से प्रोत्साहित होकर इनकी कविता लिखने में रूचि जागी है। फिलहाल ये आईटी इंडस्ट्री बैंगलोर में कार्यरत हैं।

matruadmin

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