Read Time2 Minute, 4 Second
देखते हो आप
हर जगह
एक प्रतिस्पर्धा,
हर कोई
आगे निकलना
आगे बढ़ना
चाहता है,
इसके लिए
दिन-रात
सुबह-शाम
दौड़ रहा,
लगातार
चल रहा
एक अंधी दौड़,
जिसमें
शांति नहीं
केवल होड़ है,
जिसका
न आदि न अंत है,
निन्यानवें के फेर-सा
क्या चाहता आदमी
धन जोड़ना
नाम कमाना
दहशत फैलाना
दबदबा बताना…
आखिर क्यों है दौड़,
यह कैसी प्रतिस्पर्धा
जिसमें सबल विजय
निर्बल की हार,
क्या यही है प्रतिस्पर्धा
जहाँ कतारें
लम्बी-लम्बी कतारें,
उनमें खड़े नौजवान
पिचके गाल
सिकियाँ पहलवान से
जवानी का तन
कंकाल-सा,
नौकरी की आस में
कभी चक्कर आते,
कभी उठता
कभी बैठता,
कितना संघर्ष
कितना श्रम…
फिर भी
न कोई
रोजगार,
घर लौटे
खाली हाथ।
#राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’
परिचय: राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ की जन्मतिथि-५ अगस्त १९७० तथा जन्म स्थान-ओसाव(जिला झालावाड़) है। आप राज्य राजस्थान के भवानीमंडी शहर में रहते हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है और पेशे से शिक्षक(सूलिया)हैं। विधा-गद्य व पद्य दोनों ही है। प्रकाशन में काव्य संकलन आपके नाम है तो,करीब ५० से अधिक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया जा चुका है। अन्य उपलब्धियों में नशा मुक्ति,जीवदया, पशु कल्याण पखवाड़ों का आयोजन, शाकाहार का प्रचार करने के साथ ही सैकड़ों लोगों को नशामुक्त किया है। आपकी कलम का उद्देश्य-देशसेवा,समाज सुधार तथा सरकारी योजनाओं का प्रचार करना है।
Post Views:
740
Wed Dec 27 , 2017
न करो भाइयों अपने ही घर में राजनीति, ये तो है दोहरे किरदार वालों की कूटनीति। इससे तो अपने आपसी रिश्तों में आती हैं दूरियां, बन जाती है घर के अंदर लाने से ये फूटनीति। लाओगे घर में इसे तो,सुख से न रह पाओगे, गँवाओगे सब कुछ,और नींद-चैन सब गँवाओगे। […]
बहुत सुन्दर रचना।