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न करो भाइयों अपने ही घर में राजनीति,
ये तो है दोहरे किरदार वालों की कूटनीति।
इससे तो अपने आपसी रिश्तों में आती हैं दूरियां,
बन जाती है घर के अंदर लाने से ये फूटनीति।
लाओगे घर में इसे तो,सुख से न रह पाओगे,
गँवाओगे सब कुछ,और नींद-चैन सब गँवाओगे।
न मिलेगा एक पल के लिए भी तुम्हें चैन,
बेचैन हो अकेले,ढोल अपना ढपढपाओगे।
चलो तुम अपनों को,सदा साथ लेकर,
पियो तुम मां-पिता के,चरणों को धोकर।
पाओगे आशीष बिना,मांगे ढेरों,
छोड़ राजनीति जरा,देखो अपनों के होकर॥
#अरविंद ताम्रकार ‘सपना’
परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।
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