कैसे कटेंगें अब पहाड़ से ये दिन

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 rupesh kumar
कैसे कटेंगें अब पहाड़ से ये दिन,
जीवन की टूक
मन की भूख,
तन की भूख।
कहाँ गई कोयल की कूक!
दिन हुए पलछिन,
            उपहार से ये दिन…
कैसे कटेंगें अब पहाड़ से ये दिन।
चरण अविराम के,
रुक गए कैसे राम के!
सीता सरीखा मन,गए क्यों दिन,
                बहार से ये दिन…
कैसे कटेंगें अब पहाड़ से ये दिन।
जेठ की तपन,
मन की अगन…
तन की जलन,
लूट गया अगन छुआ गगन!
चली वह पश्चिमी नागिन,
                   उजाड़ से ये दिन…
कैसे कटेंगें अब पहाड़ से ये दिन!!
                                                #रुपेश कुमार

परिचय : चैनपुर ज़िला सीवान (बिहार) निवासी रुपेश कुमार भौतिकी में स्नाकोतर हैं। आप डिप्लोमा सहित एडीसीए में प्रतियोगी छात्र एव युवा लेखक के तौर पर सक्रिय हैं। १९९१ में जन्मे रुपेश कुमार पढ़ाई के साथ सहित्य और विज्ञान सम्बन्धी पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करते हैं। कुछ संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी किया गया है।

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